शनिवार, 21 सितंबर 2019

खड़ी बोली हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओँ का विकास

ईसा से 2000 वर्ष (या और अधिक) वर्ष पूर्व तक वैदिक भाषा का प्रचार था जिसके सम्बन्ध ईरानी भाषा से थे | इस भाषा का प्रयोग आर्य लोग किया करते थे। यह संस्कृत से भी पहले बोली जाती थी।
पाणिनि ने लगभग 500 ईसा पूर्व ‘अष्टाध्यायी’ की रचना की, जिसे पाणिनीय व्याकरण भी कहते हैं। इसे संस्कृत के विकास में एक बड़ा कदम माना जा सकता है, क्योंकि इससे भाषा में एकरूपता आ गयी। संस्कृत हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि कई सभ्यताओं के लिखित अभिलेखों में अधिकता में प्रयोग की गयी भाषा है। वैदिक भाषा के सुदृढ़ होने पर यह बनी और मध्य व दक्षिण-पूर्व एशिया में बुद्धिजीवी इसका प्रयोग करने लगे। जहाँ कि वैदिक भाषा जनसाधारण के बोलचाल और वेद की भाषा थी, संस्कृत का प्रयोग उच्च वर्ग तक सीमित हो गया और यह सामान्य से खास लोगों की भाषा बन गयी। लगभग 100 ईसा पूर्व तक यह चलन में थी।
जैसे-जैसे संस्कृत की पहुँच सीमित होती गयी, अन्य स्थानीय भाषाएँ जन्म लेती गयीं। यह भाषाएँ ‘प्राकृत’ यानी जो भाषाएँ स्वाभाविक बोल-चाल में इस्तेमाल की जा सकें, कही जाने लगीं।पालि इस कड़ी में पहली भाषा थी, जिसे ‘पहली प्राकृत’ का दर्जा भी दिया जाता है। मागधी या पालि धीरे-धीरे मगध और आस-पास के भारतीय जनपदों में बोलने में प्रयुक्त होने लगी। श्रीलंका से लेकर मध्य भारत तक पालि भाषा का मौखिक रूप से विस्तार हो रहा था, पर इसमें लेखन को प्रोत्साहन बौद्ध अनुयायियों ने दिया। इसे लिखने के लिए ब्राह्मी, खरोष्ठी आदि लिपियों का प्रयोग होता था। पहली शताब्दी ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व से 100 ईस्वी तक पालि का बोलचाल, साहित्य, राजनीति और अन्य क्षेत्रों में प्रयोग हुआ।
पालि में लेखन प्रारम्भ होने के बाद क्षेत्रीय साहित्यकार इसमें धीरे-धीरे बदलाव करते गए, जिससे प्राकृत की दूसरी पीढ़ी तैयार हुई। इसकी मुख्यतः पांच शाखाएं मानी जाती हैं – महाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी, अर्द्धमागधी, पैशाची।महाराष्ट्री से मराठी का जन्म हुआ।पैशाची, जो पंचनदप्रदेश (पंजाब) की तरफ बोली जाती थी, लहन्दा और पंजाबी भाषा का आधार बनी।शौरसेनी (शूरसेन के क्षेत्र की भाषा) अनेकों भाषाओं में परिवर्तित हो गयी, जैसे – गुजराती, राजस्थानी, पश्चिमी हिंदी, पहाड़ी इत्यादि।
मागधी भी धीरे-धीरे राज्यों के साथ विभक्त होती गयी और बंगला, असमी, बिहारी, उड़िया, मागधी आदि में टूट गयी। अर्द्धमागधी से पूर्वी हिंदी का जन्म हुआ।
जैसा कि नाम से ही विदित है, अपभ्रंश टूटी-फूटी हिंदी के लिए प्रयोग किया जाता था, जिसे प्राचीन हिंदी भी कह सकते हैं। इसके तीन रूप थे – नागर, उपनागर और ब्राचड़। लगभग 1000 या 1050 ईसवी तक इसका प्रयोग हुआ।
अपभ्रंश धीरे-धीरे बढ़ते प्रयोग से व्यवस्थित होती गयी और अंत में खड़ी बोली बन गयी। मुग़लों के भारत पर आधिपत्य के कारण अरबी और फ़ारसी शब्दों वाली बोली का नाम उर्दू रखा गया | जब उर्दू देवनागरी लिपि में लिखी गयी तो यह ‘हिन्दुस्तानी’ कही जाने लगी|
भारत की स्वतंत्रता के बाद देश बंट गया और हिंदुस्तानी की उपेक्षा होने लगी| अरबी, फ़ारसी शब्दों की बहुतायत वाली भाषा की लिपि देवनागरी नहीं रह सकी | हिंदुस्तानी भाषा में संस्कृत के शब्द भरने लगे और लिपि देवनागरी हो गयी |

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