सोमवार, 2 सितंबर 2019

भारतमाता का आक्रोश

कंस को कृष्ण ने नहीं मारा, रे| कंस को उन हजारों नवजात शिशुओं की भटकती आत्माओं ने मारा, जो बच्चे अपनी माँओं की गोद से छिन कर पत्थर पर पटक दिए गए थे| कंस को उन आँसुओं के समुद्र ने लील लिया जो हज़ारों रोती-बिलखती मृतवत्सा माँओं की आँसुओं की बूँदों से बना था| नहीं तो कोई ग्यारह साल का बच्चा नामी-गिरामी पहलवानों को अखाड़े में चीर-फाड़ कर फ़ेंक सकता है?
काँग्रेस को मोदी ने नहीं हराया, बीजेपी ने नहीं हराया| कॉंग्रेस को उन आँसुओं ने हराया जो लाखों सिसकती बेवश आँखों से गिरे थे - कुछ विस्थापित काश्मीरियों की आँखों से जो अपनी मातृभूमि को देखने को तरस गए, और कुछ उन आँखों से जो काश्मीर सीमा पर शहीद अपने पतियों के लौट आने की झूठी प्रतीक्षा में खुली रहती थीं| काँग्रेस को उन नौजवानों की आहों ने हराया जिनके सपने बेरोज़गारी की भट्ठी में जलकर राख हो गए| काँग्रेस को उस घुटन ने लील लिया जो अपने ही देश में बेगाने हो गए लोगों की आत्माओं में बस गए थे| काँग्रेस राजनीति के चलते नहीं हारी है| काँग्रेस की हार भारतमाता के आक्रोश का फल है, इसे बीजेपी का कौशल मत समझो| ज्वालामुखी धरती के अंतस्तल में उबलती हुई भट्ठी के चलते फूटता है, सर ज़मीन पर की हलचलों से नहीं|

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