गुरुवार, 12 सितंबर 2019

संत रामगोपाल

संत रामगोपाल 21 दिनों से अनशन कर रहे थे - पानी तक नहीं पीते थे| उनकी ज़िद थी कि या तो महाकाल दर्शन दें और मेरी मनोकामना पूरी करें - या फ़िर मुझे अनशन पर ही मरने दें |
आख़िर इक्कीसवीं रात को महाकाल पसीज़ गए| कैसे मरने दें इतने सच्चे भक्त को? प्रकट होकर बोले - रामगोपाल, उठो| क्या मनोकामना है तेरी? बतलाओ| अनशन तोड़ो|
रामगोपाल गद्गद हो गए| बोले, प्रभु आप प्रसन्न हैं तो मेरी मनोकामना पूरी करें| भारत में किसी विभाग में अगर शीर्ष अधिकारी चरित्रहीन हो तो वह अपंग और पागल हो जाये| महाकाल हँसे और बोले - एवमस्तु| यह कहकर महाकाल अंतर्धान हो गए|
अगली सुबह अख़बार इस ख़बर से भर गए कि अमुक विभाग के अध्यक्ष पागलों जैसा व्यवहार कर रहे है, अनाप-सनाप बक रहे हैं| तमुक विभाग के उच्चतम अधिकारी कल शाम 6 बजे से कटोरा लिए भीख माँग रहे हैं और हर मुसाफ़िर के पाँव छू रहे हैं| लमुक विभाग के सर्वोच्च अधिकारी अपनी कोठी के सामने नंगा होकर नाच रहे हैं| भमुक विभाग के मुख्य अधिकारी मोहल्ले वालों का मज़मा लगाए हैं और हास्यास्पद बातें कर रहे है| इत्यादि, इत्यादि|
बारह बजे तक टीवी एक ही तरह के समाचार से भर गए| अमुक मिनिस्टर तमुक मिनिस्टर के ऑफिस में घुस कर तोड़-फोड़ कर रहे हैं, दरवानों तक से हाथापाई कर रहे हैं, अनर्गल बातें बोल रहे हैं| एक भी मंत्री के होश ठिकाने नहीं हैं| सारा कुनबा जैसे पागल हो गया है|
राष्ट्रपति ने विना संवैधानिक क़दम उठाये, विवशता की तहत, बहुत फ़रमान जारी किये और हर विभाग में एक आपातकालीन प्रभारी की नियुक्ति की - तत्काल विभागों को चलाने के लिए| हर विभाग के उच्चतम अधिकारी को हॉस्पिटल भेज दिया|
अगला तमाशा और संगीन था| हर विभाग का प्रभारी अधिकारी भी पागलों की सी हरकतें करने लगा| विवश होकर राष्ट्रपति ने उन्हें भी हॉस्पिटल भेजा और उनकी जग़ह नए प्रभारी नियुक्त किये गए|
यह सिलसिला चलता रहा और कुछ विभागों में लिपिक और दरवान तक इस डर से ऑफ़िस नहीं आने लगे कि अगर पकड़े गए तो प्रभारी बना दिए जायेंगे और अगले दिन हॉस्पिटल भेज दिए जायेंगे| कुछ विभागों में केवल दरवान आते थे और ऑफ़िस का दरवाज़ा खोल कर बैठ जाते थे| अकेलेपन से जूझने के लिए बीड़ी पीते रहते थे|
दो-तीन महीनों के अंदर सरकार का चक्का जाम हो गया, पब्लिक बिलबिला गयी, बैंक बंद होने लगे, यातायात ठप हो गया, शहर के लोग भाग-भाग कर गाँवों में आकर बैठ गए, बिजली नहीं आने लगी, हॉस्पिटल बंद हो गए, स्कूल, कालेजों और विश्वविद्यालयों में किवाड़ बंद हो गए| इनके सारे अधिकारी हस्पताल से पागलख़ाने पहुँच गए|
इसी तरह कई महीने गुज़र गए तो संत रामगोपाल को पछतावा होने लगा| मध्य रात्रि में वह मंदिर गए और महाकाल के सामने बुक्का फाड़ कर रोने लगे| महाकाल तुरत प्रकट हुए| रामगोपाल उनके चरणों में गिर गए - भर्राती आवाज़ में बोले - क्षमा, भगवन, क्षमा| कुछ चरित्रहीनों को बख़्श दीजिये, नहीं तो सारा समाज, सारा देश डूब जायेगा| यह कहकर रामगोपाल सुबक-सुबक कर रोने लगे|
महाकाल द्रवित होकर बोले - एवमस्तु| सुनो, रामगोपाल, चरित्रहीनता बहस करने के लिए है, लेक्चर और भाषण देने के लिए है, वास्तविक जीवन से हटाने के लिए नहीं| यह कलिकाल है, यहाँ चरित्रहीनता ही उन्नति का मूल है| नष्टे मूले नैव शाखा न पत्रम् | जड़ ही ख़त्म हो जाएगी तो जनजीवन अस्तव्यस्त हो जायेगा| बातों को समझो, दकियानूसी छोड़ो|
इतना कह कर महाकाल अंतर्धान हो गए| अगले दिन से स्थिति सुधरने लगी| सुधार देखकर रामगोपाल नाचने लगे| लोगों ने कहा - लो, अब यह साला पगला गया, अपने को बड़ा संत और चरित्रवान मानता था|

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