शनिवार, 21 सितंबर 2019

भारतीय संस्कृति में पुरुषार्थ

मानव होने के महत्त्व के प्रतिपादन को पुरुषार्थ (the significance of one's being) कहा गया है| इसके चार पहलू हैं - काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष|
इच्छाएँ काम हैं - चाहे वह इच्छा जीवन को चलाने (sustenance) के लिए हो या जीवन की तारतम्यता (perpetuity) और प्रसार (proliferation) के लिए हो| इच्छाओं का होना मानव के लिए ही नहीं वरन पशुओं और पेड़-पौधों के लिए भी सहज गुण है|
काम की पूर्ति के लिए साधनों की आवश्यकता होती है| साधनों की चिंता करना, उन्हें ढूँढना, उनका इंतजाम करना अर्थ कहलाता है| अर्थ का इंतजाम करना जीवों का सहज गुण है|
धर्म उन विचारों एवं क्रियाकलापों का नाम है जो केवल अपने काम और अर्थ के लिए ही नहीं, वरन अपने से बाहरी दुनियाँ (समाज, सम्पदा, परिस्थिति आदि) के लिए हितकारी हैं| सारे जीव ऐच्छिक या अनैक्षिक रूप से धर्म में कमोबेश प्रवृत्त होते हैं| जाति के हित में अपना बलिदान और परोपकार की भावना (altruism) जानवरों में भी पायी जाती है| मानव की धर्म में प्रवृत्ति बहुधा ऐच्छिक और सज्ञान होती है|
मोक्ष पुरुषार्थ का अंतिम महत्त्व है| यह तत्वज्ञान और अनंत कल्याण से होता है| समझ कर्त्ताभाव से ऊपर उठकर द्रष्टाभाव (साक्षीभाव) की प्राप्ति है| मोक्ष व्यक्ति को काम, अर्थ और धर्म के बंधनों से मुक्त कर देता है| मोक्ष एक वैचारिक स्थिति है| जब किसी खेलते बच्चे का खिलौना टूट जाता है तो वह रोने लगता है, पर माँ-बाप रोते नहीं| बच्चे को आश्वासन देते हैं कि दूसरा खिलौना ला देंगे| इसी भाव से जीना मोक्ष कहलाता है|

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