सोमवार, 2 सितंबर 2019

धर्मो रक्षति रक्षितः

अपने एक अज़ीज़ दोस्त ने एक बड़ा अहम सवाल पूछा है: "धर्म हमारी रक्षा करता है या हम धर्म की रक्षा करते हैं?". मैं कोई ज्ञानी आदमी नहीं हूँ - लेकिन अपनी मति के अनुसार जो सोचता हूँ वह नीचे लिख रहा हूँ| आप भी सोचिये|
पहली बात: धर्म कहते किसे हैं? धर्म उन सारे विचारों और कर्तव्यों/कार्यों का समवाय (organic whole) है जिससे समाज को सामंजस्य (balance) , स्थिरता (stability) , कुशलता (efficiency) ,विकास (development) और न्याय (justice) मिलते हैं| इन चीज़ों के तीन पहलू हैं - भौतिक (फिजिकल और मटेरियल), बौद्धिक (इंटेलेक्टुअल) और पराबौद्धिक या आध्यात्मिक (स्पिरिचुअल)| धर्म इस समन्वय को कहते हैं|
धर्म के इतने व्यापक रूप को समझना बहुत कठिन है| इसलिए व्यवहारिकता के लिए चार उपदेश हैं| (१) देखो, आदर्श लोगों ने क्या किया है| आदर्श लोग अधिक सुलझे, दूरदृष्टि वाले, भले और समाज के हितचिंतक होते हैं| भरसक, उनका अनुगमन करो| (२) देखो, पढ़ो, चिंतन करो कि शास्त्रों में क्या लिखा है| उनके सार को समझो, सीठी को मत पकड़ो, और उन्हें अपने जीवन में लाओ| (३) कोई नहीं जानता कि तुम्हारे सोचने और करने का असर समाज के हित में होगा कि नहीं - वे समाज के सामंजस्य, स्थिरता, कुशलता, विकास और न्याय के अनुकूल होंगे या प्रतिकूल| अंतिम फल तुम्हारे हाथ में नहीं है| लेकिन भावनाओं को, नीयत को, पवित्र रखो| नीयत महत्वपूर्ण है| (४) विवेकवती आस्था रखो - आस्था सही कर्तव्य के विवेचन और ज्ञान के लिए मददगार है| लेक़िन आस्था का अर्थ अंधभक्ति नहीं है| आस्था को विवेक से विहीन मत करो| आस्थाहीन विवेक मूलहीन है और विवेकहीन आस्था बाँझ होती है| ऊपर के तीनों (आदर्श लोगों का अनुकरण, शास्त्रों का अनुशीलन और नीयत की अच्छाई) व्यवहारों को विवेक से परिमार्जित करो, क्योंकि उन तीनों में विरोध या विरोधभास हो सकता है|
दूसरी बात: धर्म की रक्षा कैसे होती है, इसकी रक्षा कौन करता है, और धर्म पर ख़तरा कब होता है, किसके चलते होता है? धर्म की रक्षा समर्थ और विवेकवान व्यक्तियों के द्वारा होती है, उनके आचरणों से होती है| असमर्थ जनता समर्थ और विवेकवान व्यक्ति को समर्थन देकर और उनका अनुकरण कर के धर्म की रक्षा में मदद कर सकती है, साथ ही जनता को समर्थ लेक़िन अविवेकी व्यक्तियों को समर्थन देने और अनुकरण करने से विमुख होना पड़ेगा|
धर्म पर ख़तरा तब आता है जब सामर्थ्यवान लोग अविवेकी होते हैं और समाज के इतर व्यक्ति, स्वार्थ, अंधभक्ति या अदूरदर्शिता के कारण, उनका समर्थन, सम्पोषण और अनुकरण करके उन्हें और मज़बूत बनाते हैं|
तीसरी बात: धर्म रक्षा कैसे करता है - किसकी रक्षा करता है? धर्म पहले तो अपना कार्य करता है - समाज को सामंजस्य, स्थिरता, कुशलता, और विकास प्रदान करता है, और साथ ही साथ न्याय देकर व्यक्ति की रक्षा करता है, उसे समाज के सामंजस्य, स्थिरता, कुशलता और विकास में भागीदार बनाता है|
इसीलिए कहा गया है - धर्मो रक्षति रक्षितः| यह हर व्यक्ति का कर्तव्य हो जाता है कि वह धर्म की रक्षा में सहयोग दे - आस्था और विवेक को साथ लेकर चले| यह ख़ास कर सामर्थ्यवान व्यक्ति के लिए अनिवार्य कर्त्तव्य है|

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