गुरुवार, 12 सितंबर 2019

तन्हाई में बढ़े हाथों की कहानी

बहुत बार हाथ बढ़ाये | हर बार मेरे हाथों को बयार ने चूमा और कहा कि ऐ नादान इंसान, करना ही है तो हवाओं से मुहब्बत कर| वो तुम्हें हर घड़ी साथ देगी, मरते दम तक साथ देगी और तेरे मरने के बाद भी तेरी याद में रोएगी|
मेरे बढ़े हाथों को रौशनी ने सहलाया और कहा कि ऐ नेक बन्दे - देखना ही है तो मेरी ओर देख| मैं फूलों में रंग भरती हूँ। मैं पौ फटने के साथ ही तुम्हे जगा दिया करुँगी - तेरे साथ मीठी-मीठी बातें करुँगी, तुझे मुस्कराने के पहले शरमाने वाली कलियों के बीच ले जाऊँगी, तुम्हें चिड़ियों के गाने सुनवाऊँगी|
मेरे बढ़े हाथों को सुबह के कोहरे ने हौले-हौले छुआ और कहा कि ऐ दोस्त, मेरे साथ चल| मैं तुझे उन वादियों में ले चलूँगा जहाँ तेरे और मेरे सिवा कोई और नहीं होगा| ओ दुनियाँ की रुखाई और बेरुख़ी से घायल दोस्त, मेरी आँखों की ओर देख, इसमें तेरे लिए कितनी नमी है, कितनी हमदर्दी है|
मेरे बढ़े हाथों को देखकर शबनम रो पड़ी और कहा कि ऐ भोले आशिक़, मेरी ओर देख| वैसे तो में तेरी आँखों में हूँ, लेकिन जब आँखें मेरा बोझ ढो नहीं पाती तो मैं कोपलों पर बिखर जाती हूँ| मैं बिखरे हुए जज़्बात हूँ, मेरे दोस्त, मुझमें यादों के मोती छुपे हैं| मेरे क़रीब आओ और उन मोतियों का नूर देखो, ख़ुद-ब-ख़ुद सारे दर्द फ़ना हो जायेंगे|
मेरे बढ़े हाथों को चाँदनी ने आहिस्ता-आहिस्ता छुआ और कहा कि पगले ..

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