शनिवार, 21 सितंबर 2019

क्या वाल्मीकि आदिकवि थे?

ऐसा माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि आदिकवि थे| उनके मुँह से पहली कविता निकली थी - छंदबद्ध - अनुष्टुप - "मा निषाद प्रतिष्ठां त्वं। .." इत्यादि|
मैं मानकर चलता हूँ कि वेद रामायण से पहले बने| रामायण में वेदों के होने का उल्लेख है|
कविता अगर छंदोबद्धता है तो क्या छंदोबद्ध रचना, पहली वार, वाल्मीकि ने की? क्या अनुष्टुप (अनुष्टुव) छंद की रचना वाल्मीकि ने की? उत्तर है, नहीं| शीक्षा (उच्चारणशास्त्र) और छंद (prosody) तो वेदांग रहे ही हैं| वेदों में सीधे (linear, periodic) और ऋजु (non-linear, aperiodic) दोनों तरह के छंद प्रचुर रूपों में आये हैं| वेदों में कम से कम 15 प्रकार के छंद प्रयुक्त हुए हैं।वार्णिक और मात्रिक दोनों तरह के छंदों के उदाहरण मिलेंगे| ऋग्वेद में सात तरह के छंद भरे पड़े हैं - वे हैं, गायत्री, अनुष्टुव, त्रिष्टुव, जगती, उष्णिह, बृहती, और पंक्ति| कुल ऋचाओं में त्रिष्टुव और गायत्री की संख्या सबसे अधिक है|
अगर कविता का मतलब भाषा का अलंकार है, तब भी वेदों की ऋचाओं में इसकी कमी नहीं है| उनमें रस का भी अभाव नहीं है| हाँ, अगर करुण रस को ही कविता का नाम मिले तो दूसरी बात है| उस दृष्टि से रामायण के अधिकतर श्लोक अकविता की श्रेणी में आयेंगे और prose (गद्य) और prosody (पद्य) का भेद मिटाना होगा|
मेरे लिखने का उद्देश्य यह इंगित करना नहीं है कि वाल्मीकि महाकवि नहीं थे| अवश्य थे, लेक़िन आदिकवि नहीं थे; पद्यों, छंदों, अलंकारों और रसों का वांग्मय में उद्भव और प्रवर्तन उनके पहले ही (वेदों में) हो चुका था| ऐसा मानना कि महर्षि वाल्मीकि के मुख से "मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत् क्रौञ्चमिथुनादेकमवधी: काममोहितम् ।।" श्लोक के रूप में भगवती सरस्वती का प्राकट्य हुआ और ऐसा ब्रह्मा जी ने स्वयं उन्हे (वाल्मीकि को) बतलाया है, मिथक नहीं, मिथ्या है| जिन ऋषियों ने वेदों की ऋचाओं की रचना अनेक पद्यों में की, वे निश्चित रूप में वाल्मीकि से पहले के कवि थे| भगवती सरस्वती का प्राकट्य वेदों की ऋचाओं में हुआ था|

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