शनिवार, 7 सितंबर 2019

मंदी क्यों न हो?

काला धन और काला बाज़ार भारतीय अर्थव्यवस्था के मूल स्तम्भ रहे हैं और भारत की स्वतंत्रता के बाद फले-फूले हैं| काली पूँजी कुल पूँजी की दो तिहाई है - हर एक उजले रूपये पर दो रुपया काला पैसा है|
मोदी की करतूतों के चलते इस काली पूँजी को ज़बरदस्त धक्का लगा है| मोदी हिचक़ नहीं रहे हैं - हर तरह से इस काली पूँजी के कालियानाग पर नियंत्रण पाने को बेताव हैं|
अब जब कुल पूँजी का 2 /3 भाग संकट में हो, शिक़स्त में हो, तो पूँजी बाज़ार कैसे हँसे? मंदी तो आएगी ही| जब चिदंबरम जैसे महारथी तिहाड़ जेल भेजे जा रहे हैं, शिवकुमार को पकड़ा जा सकता है, तो काली कमाई, काली पूँजी और काले पूँजीपतियों की रीढ़ में सिहरन पैदा होगी ही| इसीलिए चिदंबरम को तिहाड़ जाने का मलाल नहीं है, वह शहर (अर्थव्यवस्था) के अंदेशे से दुबले हो रहे हैं | यह देशभक्ति की नयी मिसाल है|
क़िताब पढ़ना छोड़ दें तो अर्थशास्त्र समझना आसान है| आइये, किसी बड़े शहर में घर या ज़मीन ख़रीदने के लिए दलाल से मिलिए| तुरंत पता चल जायेगा कि कुल क़ीमत के तीसरे हिस्से पर रजिस्ट्री होगी और दो तिहाई पैसा कैश देना होगा| यह कैश ब्लैक मनी है| डॉक्टरों, इंजीनियरों, और ठेकेदारों का पैसा प्रायः ब्लैक मनी होता है जो अचल सम्पत्ति के बाज़ार में चलता है| नेताओं का तो जन्म ही ब्लैक सेक्टर में होता है| व्यापारी ब्लैक मनी पर सारा धंधा करते रहे हैं| अनुमान कीजिये - नूडल्स पर, कुरकुरे पर, आलू चिप्स पर, होटल में खाने पर, बिजली के सामानों पर, कपड़ों पर, सौंदर्य प्रसाधनों पर (लम्बी लिस्ट होगी) मुनाफ़ा कितना होता है| क्या यही मुनाफ़ा कृषक को भी होता है?
उपर्युक्त मुनाफ़े का एक हिस्सा नेताओं को जाता है और दूसरा हिस्सा गुंडों को| स्वाभाविक है, व्यापारी, नेता और गुंडे मिल कर गिरोह बना लेंगे| यह ढर्रा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ही शुरू हो गया था| मज़ेदार बात है कि इस क्षेत्र में पूरा सेक्युलरिज़्म है - जाति का, धर्म का, पार्टी का, उम्र का, लिंग का, शिक्षास्तर का, देशकाल का, क्षेत्र का इसपर कोई असर नहीं पड़ता| यह हमारी राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय धर्म का सबसे ज़ोरदार नमूना है| इसी के बल पर भारत एक है|
मोदी ने इस गिरोहगीरी को धक्का मारा है| मोदी ने भारत की अस्मिता को, गौरवपूर्ण परंपरा को, भारतीय संस्कृति को, भारत की एकता को, सर्वांगीण सेक्युलरिज़्म को धक्का मारा है| अब खेत में धरायी कुलमन्तो रंगरेलियों को ज़ोर-जबरदस्ती कहेगी ही| विपक्षी नेतागण अपने शीलहरण का रोना रोयेंगे ही| काली पूँजी नथ पहनकर, घूँघट काढ़ कर सती-सावित्री बनेगी ही |
इब्तिदा-ए-इश्क़ है रोता है क्या
आगे-आगे देखिये होता है क्या|

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