शनिवार, 7 सितंबर 2019

नैतिकता की समालोचना

नैतिकता (morality) विचार, आचार, और व्यवहार की अनुशंसिता (prescription) और निषिद्धता (proscription) से निर्णीत होती है| किसी देशकाल में कुछ आचार, विचार और व्यवहार मान्य होते हैं और उनकी अपेक्षा की जाती है| वे नैतिक कहे जाते हैं| दूसरी तरफ़, किसी देशकाल में कुछ आचार, विचार और व्यवहार को अच्छा नहीं माना जाता है या उनपर मनाही रहती है| वे अनैतिक माने जाते हैं|
आचारों, विचारों एवं व्यवहारों के जंगल में नए पौधे उगते रहते हैं और पौधे बढ़ते, जीते तथा मरते रहते हैं| बदलता समाज उनमें से कुछ-एक को फ़ायदेमंद समझता है और कुछ दूसरों को हानिकारक| इस तरह आचार, विचार और व्यवहार कुछ-कुछ डार्विनियन और कुछ-कुछ लमार्कियन प्रोसेस से गुजरते हुए आगे बढ़ते हैं| विकास (evolution) की प्रक्रिया में क्रमिकता (gradualism) के उदाहरण भी मिलते हैं और उत्क्रान्ति (punctuated equilibrium) के भी | इनका विकास बदलते समाज में इनकी उपयोगिता पर निर्भर करता है|
शैथिल्य और अतीतस्मृति (hysteresis) व्यक्ति में भी पाए जाते हैं और समाज में भी| ये आचार-विचार तंत्र और संहिता (moral code) में भी पाए जाते हैं| किन्तु उनमें प्रायः सामंजस्य नहीं होता| अतः रूढ़ियों के बनने और उनमें परिवर्तन की प्रक्रिया बहुधा संघर्षपूर्ण होती है| रूढ़ियाँ समाज के विकास को प्रतिरुद्ध करती है और समाज रूढ़ियों को बदलना चाहता है| यह संघर्ष चिरंतन है|
बौद्धिकता कभी-कभी इस संघर्ष को तीव्र करती है कभी धीमा| यही काम धर्म (religion) भी करता है, लेक़िन आस्था के भरोसे| ज्ञानमार्ग कठिन है और इस रास्ते पर चलने वाले बहुत नहीं होते| आस्थामार्ग सरल है अतः इसपर चलने वाले बहुसंख्यक होते हैं| इसीलिए बौद्धिक रूप से पिछड़े समाज में नैतिकता का मूल आधार धर्म (religion) होता है|

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