आदमी और जानवर में एक बहुत अहम फ़र्क है कि जानवर भाषा और शब्दों के जरिये नहीं सोचते जबकि आदमी भाषा और शब्दों के ज़रिये सोचता है| ज़ाहिर है कि अधिक शब्द अच्छी भाषा बनाते हैं, अधिक शब्द बेहतर वैचारीकरण में मदद करते हैं और बेहतर सम्प्रेषण में भी|
शब्द अर्थ से जुड़े रहते हैं| कालिदास ने कहा था - वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये (connected as the words and their meanings for the purpose of their compehension)| हालाँकि यह सम्बन्ध हमेशा एक-से-एक (one to one) नहीं, वरन एक-से-बहुत (one to many) और बहुत-से-एक (many to one) भी होते हैं| प्रायः शब्दों के पर्यायवाची शब्द होते हैं| ध्यातव्य है कि ये पर्यायवाची शब्द मोटे तौर पर एक ही अर्थ के होते हैं,लेक़िन उनमें महीन अंतर होता है| शब्दों के खिलाड़ी इन महीन अर्थों से खेलते हैं जबकि जनसाधारण उन अर्थों से नहीं खेला करते| उदाहरण के लिए संस्कृत में पत्नी के लिए कई प्रर्यायवाची शब्द हैं - सभी का स्थूल अर्थ है पत्नी| लेक़िन उनके महीन अर्थ (नुआन्स) को देखिये -
पत्नी - जिसका पालन करना मर्द (पति) का धर्म और कर्त्तव्य है|
पाणिगृहीति - जिसका हाथ पकड़ा है (साथ देने की प्रतिज्ञा के साथ)|
सहधर्मिणी - जो हर दैविक, पैतृक, सामाजिक, पारिवारिक और आध्यात्मिक कार्यों में साथ देती है|
भार्या - जिसका भरण पोषण करना कर्त्तव्य है|
जाया - जो संतान का जन्म देती है|
दारा - जो परिवार के सदस्यों से अलग करवाती है|
कुटुम्बिनी - जो परिवार बसाती है, परिवारों को जोड़ती है|
पाणिगृहीति - जिसका हाथ पकड़ा है (साथ देने की प्रतिज्ञा के साथ)|
सहधर्मिणी - जो हर दैविक, पैतृक, सामाजिक, पारिवारिक और आध्यात्मिक कार्यों में साथ देती है|
भार्या - जिसका भरण पोषण करना कर्त्तव्य है|
जाया - जो संतान का जन्म देती है|
दारा - जो परिवार के सदस्यों से अलग करवाती है|
कुटुम्बिनी - जो परिवार बसाती है, परिवारों को जोड़ती है|
शब्दों को उनके सामान्य या रूढ़िगत अर्थों से जोड़ते हुए सम्प्रेषण अभिधात्मक कहलाते हैं| वैज्ञानिक समालोचना अभिधात्मक प्रयोगों को उचित और उपयुक्त मानती है क्योंकि इसमें शब्दों और उनके अर्थों का एक-से-एक (one to one) संबंध अपेक्षित रहता है| वैज्ञानिक समालोचना की दुनियाँ विवेकशीलता की दुनियाँ है, समझने की दुनियाँ हैं|
लेक़िन एक और दुनियाँ है भावनाओं की दुनियाँ (the world of emotions)| यह समझने की दुनियाँ नहीं, महसूस करने की दुनियाँ है| आप दोस्तों के साथ बातें करते हैं, घंटे मिनट की तरह बीत जाते हैं, समय के बीतने का अहसास ही नहीं होता| आप प्रतीक्षा करते हैं तो पाँच मिनट भी घंटे भर जैसा लगता है| "जिंदगी में दो ही घड़ियाँ हम गुज़ारे हैं सनम/ एक तेरे आने के पहले, एक तेरे जाने के बाद|" वे लम्हे जो सनम के साथ गुज़ारे, विन महसूस किये बीत गए|
यह भावनाओं की दुनियाँ शब्दों से बहुत ज़्यादा अपेक्षा रखती है| यहीं से लक्षणा और व्यञ्जना के साथ शब्दों के प्रयोग शुरू होते हैं| इसी से शब्दों के प्रयोग में चमत्कार आता है| जानवर शायद ही लक्षणा या व्यञ्जना का प्रयोग करते हैं|
यह भावनाओं की दुनियाँ शब्दों से बहुत ज़्यादा अपेक्षा रखती है| यहीं से लक्षणा और व्यञ्जना के साथ शब्दों के प्रयोग शुरू होते हैं| इसी से शब्दों के प्रयोग में चमत्कार आता है| जानवर शायद ही लक्षणा या व्यञ्जना का प्रयोग करते हैं|
लक्षणा और व्यञ्जना का प्रयोग पढ़े-लिखे लोगों की थाती नहीं है| मैंने ऐसे अनेक पढ़े-लिखे लोग देखे हैं जो अभिधा के पण्डित हैं पर व्यञ्जना या लक्षणा की दुनियाँ में किसी बछिया के ताऊ से बेहतर नहीं| उन्हें कोई धाँसू कहानी या फड़कती कविता पढ़ाइये/सुनाइये तो वे बैठ कर पगुराने लगते हैं| वे मुस्कान को इंचों में और आँसुओं में छुपे ग़म की क्षारीयता (alkalinity) को pH वैल्यू से मापते हैं|
मैंने गाँवों में ऐसे अनपढ़ लोग (और लुगाइयाँ भी) देखे हैं जो लक्षणा और व्यञ्जना का भरपूर प्रयोग करते हैं| मैंने अंगिका के सारे मुहावरे उन्हीं से सीखे हैं| पढ़े-लिखे लोग तो हिंदी के उतने ही मुहावरे जानते हैं जो स्कूल की क़िताबों में थे|
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