शनिवार, 7 सितंबर 2019

भाषा की तमीज़

आदमी और जानवर में एक बहुत अहम फ़र्क है कि जानवर भाषा और शब्दों के जरिये नहीं सोचते जबकि आदमी भाषा और शब्दों के ज़रिये सोचता है| ज़ाहिर है कि अधिक शब्द अच्छी भाषा बनाते हैं, अधिक शब्द बेहतर वैचारीकरण में मदद करते हैं और बेहतर सम्प्रेषण में भी|
शब्द अर्थ से जुड़े रहते हैं| कालिदास ने कहा था - वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये (connected as the words and their meanings for the purpose of their compehension)| हालाँकि यह सम्बन्ध हमेशा एक-से-एक (one to one) नहीं, वरन एक-से-बहुत (one to many) और बहुत-से-एक (many to one) भी होते हैं| प्रायः शब्दों के पर्यायवाची शब्द होते हैं| ध्यातव्य है कि ये पर्यायवाची शब्द मोटे तौर पर एक ही अर्थ के होते हैं,लेक़िन उनमें महीन अंतर होता है| शब्दों के खिलाड़ी इन महीन अर्थों से खेलते हैं जबकि जनसाधारण उन अर्थों से नहीं खेला करते| उदाहरण के लिए संस्कृत में पत्नी के लिए कई प्रर्यायवाची शब्द हैं - सभी का स्थूल अर्थ है पत्नी| लेक़िन उनके महीन अर्थ (नुआन्स) को देखिये -
पत्नी - जिसका पालन करना मर्द (पति) का धर्म और कर्त्तव्य है|
पाणिगृहीति - जिसका हाथ पकड़ा है (साथ देने की प्रतिज्ञा के साथ)|
सहधर्मिणी - जो हर दैविक, पैतृक, सामाजिक, पारिवारिक और आध्यात्मिक कार्यों में साथ देती है|
भार्या - जिसका भरण पोषण करना कर्त्तव्य है|
जाया - जो संतान का जन्म देती है|
दारा - जो परिवार के सदस्यों से अलग करवाती है|
कुटुम्बिनी - जो परिवार बसाती है, परिवारों को जोड़ती है|
शब्दों को उनके सामान्य या रूढ़िगत अर्थों से जोड़ते हुए सम्प्रेषण अभिधात्मक कहलाते हैं| वैज्ञानिक समालोचना अभिधात्मक प्रयोगों को उचित और उपयुक्त मानती है क्योंकि इसमें शब्दों और उनके अर्थों का एक-से-एक (one to one) संबंध अपेक्षित रहता है| वैज्ञानिक समालोचना की दुनियाँ विवेकशीलता की दुनियाँ है, समझने की दुनियाँ हैं|
लेक़िन एक और दुनियाँ है भावनाओं की दुनियाँ (the world of emotions)| यह समझने की दुनियाँ नहीं, महसूस करने की दुनियाँ है| आप दोस्तों के साथ बातें करते हैं, घंटे मिनट की तरह बीत जाते हैं, समय के बीतने का अहसास ही नहीं होता| आप प्रतीक्षा करते हैं तो पाँच मिनट भी घंटे भर जैसा लगता है| "जिंदगी में दो ही घड़ियाँ हम गुज़ारे हैं सनम/ एक तेरे आने के पहले, एक तेरे जाने के बाद|" वे लम्हे जो सनम के साथ गुज़ारे, विन महसूस किये बीत गए|
यह भावनाओं की दुनियाँ शब्दों से बहुत ज़्यादा अपेक्षा रखती है| यहीं से लक्षणा और व्यञ्जना के साथ शब्दों के प्रयोग शुरू होते हैं| इसी से शब्दों के प्रयोग में चमत्कार आता है| जानवर शायद ही लक्षणा या व्यञ्जना का प्रयोग करते हैं|
लक्षणा और व्यञ्जना का प्रयोग पढ़े-लिखे लोगों की थाती नहीं है| मैंने ऐसे अनेक पढ़े-लिखे लोग देखे हैं जो अभिधा के पण्डित हैं पर व्यञ्जना या लक्षणा की दुनियाँ में किसी बछिया के ताऊ से बेहतर नहीं| उन्हें कोई धाँसू कहानी या फड़कती कविता पढ़ाइये/सुनाइये तो वे बैठ कर पगुराने लगते हैं| वे मुस्कान को इंचों में और आँसुओं में छुपे ग़म की क्षारीयता (alkalinity) को pH वैल्यू से मापते हैं|
मैंने गाँवों में ऐसे अनपढ़ लोग (और लुगाइयाँ भी) देखे हैं जो लक्षणा और व्यञ्जना का भरपूर प्रयोग करते हैं| मैंने अंगिका के सारे मुहावरे उन्हीं से सीखे हैं| पढ़े-लिखे लोग तो हिंदी के उतने ही मुहावरे जानते हैं जो स्कूल की क़िताबों में थे|

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