शनिवार, 7 सितंबर 2019

भारतीयता और प्रतिक्रियावाद

यह ऐतिहासिक सत्य है कि पिछले हज़ार-बारह सौ वर्षों की ग़ुलामी और दमन ने भारतीय मनोबल को तोड़ा, हमारी संस्कृति को क्षत-विक्षत किया, हमारे शास्त्रों का विनाश किया, हमारे इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा| यह आवश्यक है कि हम अपना पुनर्निर्माण करें, टूटी कड़ियों को जोड़ें, नयी व्याख्याओं का प्रवर्त्तन करें, अपने खोये आत्मबल को जाग्रत करें|
लेक़िन पुनर्निर्माण का महान कार्य प्रतिक्रियावादी बनने से संपन्न नहीं होगा| यह "I am OK, you are not OK" की मनोग्रंथि से संपन्न नहीं होगा| अतीत पर अनावश्यक गौरव करने से नहीं होगा| यह कहने से नहीं होगा कि जो कहीं भी है हमारे वेद-शास्त्रों में पहले से ही है और जो हमारे वेद-शास्त्रों में नहीं है वह कहीं नहीं है| ऐसा मानना प्रतिक्रियावाद है जो आत्मघाती है|
वेद-शास्त्रों को पढ़ना-समझना ज़रूरी है लेक़िन काफी नहीं है| यह आवश्यक है कि हम उन शास्त्रों को भी पढ़ें जो विदेशों में बने| ज्ञान और सरस्वती पर भारतीयों का एकाधिकार नहीं है| माता सरस्वती को उजली या काली चमड़ियों वाले पुत्रों से घृणा नहीं है|
उन्होंने (विदेशियों ने) हमारा शोषण किया, हमारा अपमान किया | लेक़िन माता सरस्वती की उपासना उन्होंने भी की है| अतः माँ का वरदान उन्हें भी मिला है| हम अपने गुस्से के चलते उन्हें माँ की कृपा से वंचित नहीं कर सकते| समझदार वे हैं जो विद्या/ज्ञान को कहीं से भी ले लेते हैं - कौवों से, कुत्तों से, गधों से| दत्तात्रेय के कैसे-कैसे गुरु थे? तो विदेशियों से कैसी चिढ़?

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