शनिवार, 21 सितंबर 2019

हिंदी दिवस पर

हिंदी मेरी अपनी भाषा है, मैं इसे बेहद प्यार करता हूँ| मैं चाहता हूँ कि हिंदी इतनी धनी भाषा हो कि इसको विना पढ़े कोई भी ढंग का विद्वान (किसी भी विषय में) न बन सके| कोई ऐसा ज्ञान-विज्ञान न हो जिसकी शीर्ष किताबें हिंदी में उपलब्ध नहीं हों|
किन्तु माज़रा कुछ और है| पिछले सत्तर वर्षों में हिंदी को संस्कृतनिष्ठ बनाने की तमाम कोशिशें की गयी हैं, इसका हिंदुस्तानी रूप (बाज़ारू भाषा कहकर) अपमानित हुआ है, उर्दू फ़ारसी के शब्द निकाल बाहर किये गए हैं| यह दर्ददेह है|
हिंदी का इश्तेमाल अज्ञानता की ढाल की तरह किया गया है| यह सोचा गया है कि प्रेमचंद के उपन्यासों/कहानियों और जयशंकर प्रसाद की कविताओं के सहारे रॉबोटिक्स या कंप्यूटर साइंस पढ़ाया जा सकता है| हिंदी भाषा को पॉपुलिज़्म और घटिया राजनीति का हथियार बनाया गया है| मातृभाषा के लिए हमारे स्वाभाविक प्रेम और कोमल भावनाओं का दोहन किया गया है| मुझे इसीका दुःख है| लोग हिंदी-हिंदी करते ज़रूर हैं लेक़िन चार पंक्ति का लेख लिखने में (हिज़्ज़े और लिंग की) सोलह ग़लतियाँ करते हैं|  कोई भी राष्ट्र, कोई भी समाज, कोई भी समुदाय जो न तो ख़ुद लिखकर और न अनुवाद कर के अपनी भाषा और अपने साहित्य को समृद्ध करता है, वह मूर्खता के भंवर में पड़ जाता है|

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