शनिवार, 21 सितंबर 2019

प्रेय और श्रेय

कठोपनिषद में यम-नचिकेता संवाद के जरिये दो तरह के उद्देश्यों, कामनाओं और एतदर्थक प्रयासों का वर्णन हुआ है - प्रेय और श्रेय|
प्रेय उन कामनाओं एवं उद्देश्यों का नाम है जो प्रिय की उपलब्धि कराते हैं - प्लेजेंट (pleasant) होते हैं, ज्ञानेन्द्रियों और मन को तुष्ट करते हैं| अच्छा भोजन, अच्छे वस्त्र, अच्छा आवास, अच्छा स्वर, अच्छा दृश्य, सुखद स्पर्श, सुगंध, अच्छी बोली, आदर, सम्मान, प्रभुता, इत्यादि प्रेय हैं| हर व्यक्ति की चाहत प्रेय की प्राप्ति होती है|
श्रेय अपने अंतिम रूप में कल्याणकारी होता है, व्यक्ति के लिए और समाज के लिए भी|
प्रेय कभी-कभी श्रेयस्कर होता है कभी-कभी नहीं| मछली प्रेय की साधना में चारा खा जाती है और वडिश (बंशी) में फँस जाती है| कहा गया है - पतंग मातंग कुरंग भृंग मीना हताः पंचेभिरेव पंच । एकः प्रमादी स कथं न हन्यते यः सेवते पंचभिरेव पंच (फतिंगा, हाथी, हिरन, भौंरा, और मछली अपनी एक-एक इन्द्रियों की संतुष्टि के लिए मारे जाते हैं| मानव जो अपनी पाँचों इन्द्रियों का ग़ुलाम होता है उसका हश्र क्या होगा !)|
लेक़िन प्रेय की सर्वदा उपेक्षा भी श्रेय के रास्ते से भटका सकती है| मिथकों में बहुत बड़े-बड़े सन्यासियों, ऋषियों और मुनियों का उल्लेख है कि वे कैसे प्रेय को लांघ कर सीधे श्रेय पर कूदे और उलट कर प्रेय की साधना में डूब गए| सारी अप्सराएँ और स्वर्ग प्रेय के प्रतीक हैं| ऋषियों का पतन इसलिए हुआ क्योंकि वे प्रेय को लांघकर श्रेय पर कूदे थे|
जनक एक दूसरा उदाहरण है| वह राजा थे, पर प्रेय की साधना के साथ श्रेय की साधना भी करते थे| उनके लिए प्रेय वह गली थी जिसमें होते हुए ही श्रेय का रास्ता निकलता था|
प्रेय की उपेक्षा करते हुए श्रेय का रास्ता सीधा है किन्तु ख़तरनाक है| चढ़े तो चाखे प्रेमरस गिरे तो चकनाचूर| कुछ लोग ही उबर सकते हैं| चित्रलेखा उपन्यास में योगी कुमारगिरि गिर कर उबर गए थे| बहुत सारे बाबा लोग गिर कर डूब गए|
प्रेय की साधना से गुजरते हुए श्रेय की तरफ़ जाना ज़्यादा आसान है| उलझ तो इस रास्ते में भी सकते हैं| मैंने ख़ुद अपने जीवन में इसे महसूस किया है, अनुभव किया है, देखा है | माता सरस्वती जब खुश हुई तो प्रेय स्वतः आने लगे - दौलत, ताक़त, इज्ज़त, औरत, शोहरत | भटकने के लिए काफी कुछ| हममें से कुछ चिपक गए प्रेय में| ऐसे चिपके कि सरस्वती यानि काला अक्षर भैंस बराबर| पढ़ें-लिखें तो माँ मरे| गोबर-गणेश होकर कुर्सी से चिपक गए| मरे तो कुर्सी-समेत दाहक्रिया करनी पड़ी|
लेक़िन जो सतर्क रहते हैं, वे भटकने से बच जाते हैं| बिजली के कारीगरों को गुरु मानिये| ख़तरनाक वोल्टेज़ लिए हुए तारों से खेलते हैं| दत्तात्रेय से हमें बहुत कुछ सीखना होगा |

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