सोमवार, 2 सितंबर 2019

त्रिदेव की परिकल्पना

हिन्दू संस्कृति में ब्रह्मा, विष्णु, और महेश के नाम से त्रिदेव (Trinity) की परिकल्पना है| ब्रह्मा उत्पत्ति (creation) के, विष्णु पालन (upholding, maintenance) के, और महेश संहार (destruction) के मूल देवता माने जाते हैं| इन तीनों की कहानियाँ इतनी गुत्थमगुत्था है कि कौन पहले और कौन पीछे कहा नहीं जा सकता| ये सीधी रेखा पर नहीं होकर वृत्त पर हैं, अतः आगे-पीछे के चिंतन से परे हैं, अनादि हैं, अनंत हैं, चिरंतन हैं| किसी एक को पहले मानना साम्प्रदायिकता है, समझदारी नहीं|
जायते, वर्धते, स्थीयते, परिणमते, नश्यते का चक्र प्रकृति में सदैव चलता रहता है| Destructive construction और constructive destruction हमेशा चलते रहते हैं| पुराने का विघटन और नए का सृजन हमेशा चलता रहता है| यह जीव जगत में होता है, निर्जीव जगत में होता है| यह भौतिक संसार में होता है, वैचारिक संसार में होता है, यहाँ तक कि ब्रह्मांड में भी होता है| इस प्रवाह की सत्ता को भारतीय चिंतकों ने माना है, विदेशी चिंतकों ने माना है| विदेशी चिंतकों में इसे मानने वाले मुख्य विचारक हैं - चार्ल्स डार्विन, जॉर्ज हेगेल, कार्ल मार्क्स, वर्नर सॉम्बर्ट, आर्थर शॉपेनहावर, फ्रेड्रिक नीत्शे, माइकेल बकुनिन, जोसेफ़ शुम्पीटर, इत्यादि| ख़ासकर जोसेफ़ शुम्पीटर ने क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन (Creative destruction) को लोकप्रिय बनाया| किन्तु ये विद्वान 'सृष्टि-स्थिति-विनाश' के चक्र को प्रकृति या समाज के किसी ख़ास पहलू में देखते थे, सार्वभौम नहीं| भारतीय संस्कृति में इसे सार्वभौम देखा गया - सृष्टि , स्थिति और विनाश को एकरूप देखा गया है|
सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि!। गुणाश्रये गुणमये नारायणि! नमोऽस्तु ते॥
सैव काले महामारी सैव सृष्टिर्भवत्यजा| स्थितिं करोति भूतानां सैव काले सनातनी || (देवी सप्तशती)|

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