मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

पुण्य का फल (कहानी)

करतार सिंह एक मामूली किसान थे, अपने परिवार के लिए दोनों जून खाने का इंतजाम करने में परेशान| उनके दो बेटे हुए, दुग्गल सिंह और भुग्गल सिंह| दुग्गल सिंह बचपन से ही कद-काठी से मज़बूत, हठी और उग्र स्वभाव का था| इसके विपरीत भुग्गल सिंह की काया कोमल थी और मन उससे भी कोमल, निश्छल, पवित्र| घंटों पूजा-पाठ करता था और सबसे झुक कर ही रहता था|
जवान होकर दुग्गल सिंह इलाके का सरग़ना बदमाश हो गया| दर्ज़नों क़त्ल और सैकड़ों डकैतियों के मुक़दमे सर पर लिए था लेक़िन पुलिस के बड़े-बड़े अफ़सर उसकी इज़्जत करते थे| इलाक़े भर के छोटे-बड़े नेता, चाहे वे किसी दल के हों, दुग्गल सिंह की कृपा के भिखारी थे| दुग्गल सिंह ने, सैकड़ों अपराधों को अंजाम देने के बावज़ूद, जेल तो क्या, कचहरी में कभी पाँव नहीं रखा| उसकी मूँछ फड़कने के हिसाब से फ़ैसले बनते-बिगड़ते थे| उसके ऊपर मुक़दमा करने वाले या उसकी निंदा शिकायत करने वाले जेल में, या खेत पर, या कचहरी में, या घर पर सोये-सोये, या अस्पताल में अपने आप मर जाते थे | दुग्गल सिंह पर माँ भवानी की कृपा थी|
माँ भवानी की पैरवी पर ही सही, दुग्गल सिंह माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती का भी चहेता बेटा था| अनेक तरीक़ों से उसने हज़ार बीघे ज़मीन को अपने नाम करवा लिया था| और तो और, उसने भुग्गल सिंह का हिस्सा भी हड़प लिया | बेचारे भुग्गल ने कोई शोर-शराबा नहीं किया| दुग्गल सिंह का डेरी का भी धंधा था, वह बड़ा कॉन्ट्रैक्टर भी था, शहर में रियल एस्टेट का फलता-फूलता धंधा था, दवाओं की दुकानें थीं, उसके बड़े होटल चलते थे, पेट्रोल पम्प थे, ट्रकों का कारोबार था | अफ़वाह थी कि वह ड्रग माफ़िया और हवाला के कारोबार से भी जुड़ा था, हालाँकि इन अफ़वाहों में कोई दम नहीं था |
इस अकूत संपत्ति के मालिक दुग्गल सिंह पर किसी प्रतिभाशाली कवि ने एक दुग्गल-चालीसा लिख डाली| दुग्गल सिंह बहुत खुश हुए और उन्होंने उस कवि को पाँच बीघे ज़मीन दे दी| इस से प्रभावित होकर इलाक़े के सारे कवि कविता लिख कर दुग्गल सिंह के नाम से छपवाने लगे| बीडीओ, सीओ, इत्यादि अफ़सरों ने उनकी इतनी प्रशंसा की कि दुग्गल सिंह कवि बन गए| उन्होंने माँ सरस्वती की कृपा भी हासिल कर ली| मैं भी दुग्गल सिंह की इज़्जत करता रहा हूँ; करना जरूरी है|
लेकिन काल पर किसी का वश नहीं चलता| समय पर दुग्गल सिंह बूढ़े हुए और मर गए| दुग्गल सिंह के बेटों ने सारे इलाक़े के लोगों को तीस तरह के व्यंजनों और चालीस तरह की मिठाइयों वाला भोज तीन दिनों तक जिमाया| व्यंजनों की संख्या तीस और मिठाइयों की संख्या चालीस इस बात पर तय हुई थी कि कारीगरों और हलवाइयों ने बतलाया कि इससे अधिक बनाना वे जानते ही नहीं हैं| लोग खाते-खाते थक गए लेक़िन दुग्गल सिंह के बेटे खिलाते-खिलाते न थके| ऐसा उम्दा भोज आज तक कहीं नहीं दिया गया, जब गाय-भैसों तक को मिठाइयाँ खिलाई गयीं|
दुग्गल सिंह की स्मृति में एक विशाल ठाकुरबाड़ी, एक शिवालय, एक माँ भवानी का मंदिर, एक बालिका विद्यालय और एक धर्मशाला बनी| दुग्गल सिंह का एक अलग़ मंदिर बना - दुग्गलधाम - जिसमें उनकी संगमर्मर की विशाल मूर्ति स्थापित हुई| इस मंदिर में तीस कमरे भी हैं जिसमें आये-गए संत डेरा जमाते हैं| साधु-संतों के खाने-पीने की व्यवस्था हैं; वे ख़ुद पका लें तो या पंडित रसोइये से पकवायें तो भी| वे जितने दिन चाहे, मंदिर में रहें|
मंदिर में आने वाले दुग्गल सिंह की मूर्ति पर फूल चढ़ाते हैं| शाम में उनकी आरती होती है और प्रसाद बंटता है| आरती और प्रसाद वितरण की व्यवस्था भुग्गल सिंह के बेटे (दुग्गल सिंह के भतीजे) के हाथ में है जिसे इस काम के लिए पाँच सौ रूपये प्रति मास मिलते हैं और मंदिर परिसर में दो कमरे मुफ़्त मिले हैं जिनमें वह सपरिवार रहता है| यही उसकी जीविका है| वह अपने चचेरे भाइयों का आभारी है|

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें