शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

जस्सो कक्का (संस्मरण)

फिर एक चिड़िया उड़ी, फुर्र|
उसके बाद क्या हुआ जस्सो कक्का?
फिर एक चिड़िया उड़ी, फुर्र|
आगे कहिये, न | आगे क्या हुआ?
फिर एक चिड़िया उड़ी, फुर्र|
आगे की कहानी कहिये न, जस्सो कक्का|
जब तक सारी चिड़ियाँ उड़ नहीं जाती, कहानी आगे कैसे बढ़ेगी?
हाँ, फिर एक चिड़िया उड़ी, फुर्र|
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हमें रोज़-रोज़ कहानियाँ सुनाते-सुनाते जस्सो कक्का थक चुके थे| तो उन्होंने यह तरीक़ा ढूंढ निकाला और यही चलता रहा कुछ दिनों के लिए| आख़िर तंग आकर हमने जस्सो कक्का का पिंड छोड़ दिया|
जस्सो कक्का दूसरे टोले के थे, पर शाम में अक्सर हमारे घर आते थे| आते ही हम बच्चे उन्हें घेर लेते थे और जब तक वह कहानी नहीं सुना देते थे, हम उन्हें बड़का कक्का (हम पिता जी को बड़का कक्का कहते थे) क़रीब तक नहीं जाने देते| कहानी सुना देने के बाद बड़का कक्का से कुछ बातें करके जस्सो कक्का चले जाते थे, और इसके बाद हम बड़का कक्का के पास पढ़ने बैठ जाते थे|
जस्सो कक्का के पास कहानियों का शायद अक्षय भंडार था| उनकी कहानियों में अनेक पात्र थे, बैल थे, गायें थीं, घोड़े थे, बन्दर थे, उल्लू थे, बाज़ थे, गिद्ध थे, सांप थे, सियार थे, शेर, बाघ, चीते थे, हिरन थे, कुत्ते थे, चूहे थे, पेड़ थे, चीटियाँ थीं, राजा, रानी, राजकुमार थे, परियाँ थीं, डायनें थीं, जादूगर थे, तोते में जान रखने वाले राक्षस थे, देवता थे - कौन नहीं था उनकी कहानियों में! उनके तीन भूत तो दूर बाड़ी में खड़े ऊँचे ताड़ के जोड़े पेड़ों पर रहते थे और सिर्फ़ बदमाश, शरारती बच्चों की चुटिया काटने पेड़ों से नीचे उतरते थे| खटिया पर बैठे बच्चों को भूत नहीं पकड़ते थे|
जस्सो कक्का से हमने बहुत कहनियाँ सुनीं| तब उनके कोई संतान नहीं थी| फिर नारायण का जन्म हुआ - जस्सो कक्का का बड़ा बेटा| जस्सो कक्का से कहानियाँ सुनना हमलोग बंद कर चुके थे और जस्सो कक्का भी कम आने लगे थे| हम सोचा करते थे कि जस्सो कक्का नारायण को कहानियाँ सुनाते होंगे और इस बात पर हँसते थे कि जो बच्चा केवल रोता है, बैठ भी नहीं सकता, बिछावन पर शूशू करता है, वह कहानियाँ क्या सुनता-समझता होगा!
हम धीरे धीरे बड़े होते गए - फिर शहर चले गए - और फ़िर चले ही गए|
एक दिन किसी ने बतलाया - जस्सो कक्का नहीं रहे|
फिर एक चिड़िया उड़ी, फुर्र|
यह जस्सो कक्का के पेड़ पर अंतिम चिड़िया थी और उनकी अंतिम कहानी भी|

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