सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

चिंता का विषय

इसपर कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि भारत का समाज, इसकी मनोवृत्ति, इसके संस्थान और इसकी अर्थव्यवस्था अर्धविकसित (underdeveloped और developing) नहीं पर पिछड़े हुए (lagging) हैं| पिछड़ने के कारण बहुत सारे हैं, जैसे विदेशी शासन और उनकी नीति, स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद की नीति, भारतीय जनता और राजनीतिज्ञों, नेताओं की अदूरदर्शिता, उनका पाखंडपूर्ण देशप्रेम, बुद्धिजीवियों का दोगलापन और विकृत स्वार्थपरता, इत्यादि|
भारतीय राष्ट्रप्रेम ने बीजेपी की जीत के साथ सर उठाया जिसको नरेंद्र मोदी नेतृत्व दे रहे हैं| नरेंद्र मोदी एक ईमानदार, कर्मठ और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले चतुर व्यक्ति हैं पर अनेक विरोधी प्रबल शक्तियों (काउंटरवेलिंग पावर्स) से घिरे हुए हैं - यही चिंता का विषय है; उनके ख़ुद के लिए नहीं, भारत राष्ट्र के लिए, भारत की जनता के भविष्य के लिए|
मोदी ने काले धन और पूँजी पर हमला किया, दुश्चरित्रता पर हमला किया, पाखंडपूर्ण सेक्युलरिज़्म पर हमला किया, अलगाववाद पर हमला किया, राजनैतिक वंशवाद पर हमला किया और सबकुछ जल्दी-जल्दी किया, एक साथ किया|
इसका फल यह है कि विरोधी शक्तियाँ अनेक दिशाओं से मोदी और भारतीय राष्ट्रवाद पर प्रहार कर रही हैं| अंदर से भी कमजोरियाँ हैं - बीजेपी के कतिपय नेता न राष्ट्रवादी हैं, न दूध के धुले हैं| वे अपना उल्लू सीधा करने की ताक में लगे हुए हैं, कर भी रहे हैं| ऐसे चरित्रहीन नेता बीजेपी को अंदर से कमज़ोर बनाते हैं और विरोधी ताक़तों को मदद करते हैं|
काले पूँजीपतियों पर प्रहार हुआ है तो अर्थव्यवस्था, जो अबतक काली पूँजी पर टिकी हुई थी, चरमरा गयी है| विरोधी शक्तियाँ इस मंदी को अपना हथियार बना रही है| आभासी वस्तुस्थिति उनके पक्ष में है, उन्हें भविष्य या मूल कारणों से क्या लेना देना|
देशी और विदेशी बुद्धिजीवी एकजुट होकर मोदी की बुली कर रहे हैं, धौंस दिखा रहे हैं, सारा ठीकरा मोदी के सर फोड़ रहे हैं| पिछले सत्तर साल की दुर्व्यवस्था के कारणों पर बोलने-लिखने के लिए उन्हें कुछ नहीं है| उन्हें लगता है कि अगर बीजेपी की सरकार नहीं बनती तो भारत में स्वर्णिम युग होता| सभी धर्मों के लोग आपस में मिलकर चाय-नाश्ता करते| उद्योग धंधे फलते फूलते, बेरोजग़ारी नाममात्र को रहती, ग़रीबी ख़त्म हो गयी रहती|
तथाकथित मशहूर अर्थशास्त्री, जो नालियों में बहे हुए भारतीय दिमाग़ हैं और विदेशी नागरिकता लेकर वहीँ बस गए हैं, अपने पिछड्डे पर ताल बजा कर मोदी को नचाना चाहते हैं| वे चाहते हैं कि मुफ़्तख़ोरी भी बढ़े, निकम्मों को नौकरियाँ भी मिलें, चीजों के दाम भी न बढ़ें, विनियोग भी बढ़े, पूँजीवाद भी बढ़े, और उद्योगपतियों का गला भी घोटा जाये| भारत टुकड़े-टुकड़े भी हो और एक राष्ट्र भी हो जो दुश्मनों और दोस्तों को समान दृष्टि से देखे| चुस्त व्यवस्था भी हो और मनमानी की पूरी छूट भी हो| हम लूटें पर कोई लुटे नहीं| घोड़े और घास, होवे दोनों का विकास| वो बेदर्दी से सर काटें अमीर और मैं कहूं उन से, हुज़ूर आहिस्ता, आहिस्ता जनाब, आहिस्ता आहिस्ता|
भारत एक दब्बू राष्ट्र नहीं रहा तो पड़ोसी देश चिंतित हैं - अब किस देश की बीवी को भाभी कहेंगे? अब जब भारत ने कबूतर उड़ाना बंद कर दिया है तो उनके हाथों के तोते उड़ रहे हैं| चिंतित होना लाज़िमी है|
पिछले छह दशकों से बैंक लूटे जा रहे थे और NPA बनता जा रहा था| अब छमकछल्लो कब तक नाजायज़ पेट छिपाए? पानी में हगा तो आख़िर उतरायेगा ही| अब सब छी-छी कर रहे हैं, नाक मूँद रहे हैं, 'आदा-पादा कौन पादा' खेल रहे हैं और अंत में बीजेपी/ मोदी को मार रहे हैं| यह चिंता का विषय है|
वर्ष 1990 में अमरीकी डॉलर साढ़े-सत्रह रूपये का था| वर्ष 2013 में वह साढ़े-बासठ रूपये का हो गया था| यानि 23 वर्षों में रूपये के गिरने की औसत वार्षिक दर (rate of fall) -0.0538 थी| अब 2019 में डालर 71 रूपये का है और 2014-19 की वही दर -0.0252 है| लोगों को यह नहीं दिखता कि अगर रुपया पुराने दर (-0.0538) से गिरता तो आज डालर 81 रूपये का होता| इसपर घोर चिंता व्यक्त की जा रही है और विरोधियों को शंका है कि अर्थव्यवस्था डूब जाएगी| 1990-2013 में अर्थव्यवस्था फलफूल रही थी|
मोदी सरकार ने क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन किया है - एक जर्जर इमारत को, जो बैठने के लिए अब-तब कर रही थी, गिरा डाला है| अब नयी इमारत बनेगी| बहुत सारी ईंटें गल गयी थी, उन्हें मलवे में डालना होगा| अच्छी ईंटों का पुनरुपयोग करना होगा| यह बड़ा काम है, इस की चिंता बड़ी चिंता है|

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