मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

विद्या धन - महान धन

करतार सिंह के दो बेटे थे, एक (गणेश) ने खूब पढ़ा-लिखा और दूसरे (सुरेश) ने साक्षर होने के बाद ही पुस्तकों से नाता तोड़ कर धान ख़रीदने-बेचने, धान-कुटाई वग़ैरह का धंधा कर लिया | बड़ा वाला एक प्राइवेट स्कूल में मास्टर लग गया| गणेश को अपनी विद्या का बहुत गौरव था और वह सुरेश और उसके धंधे को तुच्छ समझता था| विद्या का गुणगान करते हुए वह अक्सर कहा करता था -
न चौरहार्यम् न च राजहार्यम्, न भ्रातृभाज्यम् न च भारकारी।
व्यये कृते वर्धते एव नित्यम्, विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् ।।

समय पर दोनों की शादी हुई, छोटे-छोटे बच्चे भी आ गए| करतार सिंह के मरने के बाद दोनों भाई अलग़ हो गए और उन्होंने अपनी-अपनी गृहस्थी अलग़-अलग बसा ली|
कुछ बरस बीते| अब ख़ुदा की वो मर्ज़ी हुई कि दोनों भाई अपनी इकलौती चचेरी बहन, जो उनसे बहुत छोटी थी, के लिए लड़का ढूंढने गंगा-पार गए और लौटते वक़्त नाव डूबने के कारण मारे गए| कोहराम मच गया|
महीने दो महीने के बाद छोटे भाई, सुरेश, की बीवी ने धंधा संभाल लिया| लेक़िन बड़े भाई, गणेश, के घर में फाके पड़ने लगे| उसके बच्चे अपनी चाची के मिल में बाल-मजदूर हो गए और गणेश की बीवी अपनी देवरानी के बर्तन माँजने लगी| सुरेश के बच्चे कान्वेंट स्कूल में पढ़ने लगे|
गणेश ने विद्या हासिल की - बेजोड़ धन, जिसे चोर नहीं चुरा सकते, पर ... कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ....| उसके बच्चों को फ़ाकाकशी मिली| सुरेश ने धन कमाया, उसके बच्चे कान्वेंट में पढ़ते हैं|
हमारे शास्त्र अधूरे हैं| अपने दिमाग़ को न बेच खाइये, ऑंखें बंद कर किसी के कहने पर मत जाइये|

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