शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

पाखंड

उनका प्रवचन ख़त्म हो चुका था, श्रोता भक्त गण जा चुके थे; कुछ प्रबुद्ध-से लोग प्रश्नोत्तर सेशन में भाग लेने बैठे थे| संतश्री ने मेवा पाया और हमने भी थोड़ा सा प्रसाद पाया|
प्रश्नोत्तर शुरू हुआ और संतश्री ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा - विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि । शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः (पंडित लोग विद्वान विनयी ब्राह्मण को, गाय और हाथी, कुत्ते और चाण्डाल को एक दृष्टि से देखते हैं)| अगला प्रश्न एक प्रौढ़ व्यक्ति, जो देखने से लगता था कि महीनों से नहीं नहाया, गन्दा कुर्ता-पायजामा पहने, दाढ़ी-बाल बेतरतीब बढ़े - ने किया - संतश्री, क्या मैं आपको चाण्डाल या कुत्ता समझूँ?
संतश्री ने तपाक से उत्तर दिया - मैं न पंडित हूँ, न विद्वान विनयी ब्राह्मण हूँ, न गाय, हाथी, कुत्ता या चाण्डाल| मैं संत हूँ| तुम आधुनिक पंडित, विद्वान ब्राह्मण हो, मार्क्सवाद ब्रांड विद्या और विनय से सम्पन्न| तुम चाहो तो अपने को गाय, हाथी, कुत्ता या चाण्डाल समझ सकते हो|

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