जुफार्माकोग्नोसी: कोयले की प्राकृतिक चिकित्सा का विज्ञान
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जब कोई कुत्ता घास की उल्टी करता है, या एक चिनपैंजी विशेष पैच का पत्ता गायब होता है - तो ये व्यवहार केवल स्वाभाविक प्रतिक्रियाएं नहीं हैं, बल्कि एक गहन जैविक बुद्धि के प्रमाण हैं। इस स्वाभाविक उपचार-बुद्धि को वैज्ञानिक वैज्ञानिकों ने कहा है - जूफार्माकोग्नोसी (Zoopharmacognosy)।
इसमें अध्ययन किया गया है जिसमें देखा गया है कि जानवर अपने पर्यावरण से विशेषीकृत, मिट्टी, खनिज या अन्य प्राकृतिक पदार्थों का चयन करते हैं ताकि वे किसी रोग, आंतरिक संकट, या जैविक आवश्यकता का समाधान कर सकें। यह क्षेत्र केवल जीवन-प्रक्रियाओं की समझ को गहरा नहीं करता है, बल्कि मानव चिकित्सा विज्ञान के लिए भी नई दिशा खोलता है।
1. परिभाषा और व्युत्पत्ति
'ज़ूफार्माकोग्नॉसी' शब्द ग्रीक मूल के तीन खंडों से मिलकर बना है - ज़ू (जानवर), फार्माकोन (औषधि), और ग्नोसिस (ज्ञान या पहचान)। इस प्रकार यह ज्ञान-वर्ग है जिसमें प्राकृतिक रूप से उपयोग के लिए औषधीय या मादक पदार्थों का उपयोग किया जाता है और प्रयोग का अध्ययन किया जाता है।
2. जूफार्माकोग्नोसी के प्रकार
इस क्षेत्र को दो मुख्य चट्टानों में बाँट दिया गया है। पहला है स्पॉन्टेनियस ज़ोफार्माकोग्नॉसी, जिसमें जानवर किसी बीमारी या परेशानी के समय स्वतः ही किसी विशेष पदार्थ या पदार्थ का सेवन करते हैं - मानो उनके शरीर में कोई जैविक बुद्धि उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित करती हो। ऑपरेंट ज़ोफार्माकोग्नोसी का दूसरा प्रकार है, जिसमें जानवर अपने अनुभव से सीखते हैं कि किस पदार्थ या उपचार का सेवन किस स्थिति में होता है, और अगली बार उसी का चयन करें।
3. विश्वभर से जुफार्माकोग्नोसी के उदाहरण
इस क्षेत्र में अब तक जो सबसे प्रसिद्ध उदाहरण सामने आए हैं, उनमें चिंपैंजी, हाथी, कुत्ता, तोते और भालू जैसे अव्यवस्थित व्यवहार प्रमुख रूप में देखे गए हैं।
चिंपैंजी को कभी-कभी एक विशेष प्रकार का गद्दा पत्ता - वर्नोनिया एमिग्डालिना - एकलते देखा गया है। यह आसानी से पचने वाला नहीं होता, लेकिन चिंपैंजी उसे चौबते नहीं, बस निगल लेते हैं। बाद में उनके लेबल से परजीवी निकल जाते हैं, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वे इसे एक प्रकार की कीमिनाशक दवाओं की तरह इस्तेमाल करते हैं।
कुत्ते और बिल अक्सर हरी घास खाते हैं, जब उन्हें कोई पाचन संबंधी समस्या नहीं होती है। यह व्यवहार किसी स्वाद के लिए नहीं होता है - बल्कि यह देखा गया है कि ऐसा करने के बाद उन्हें उल्टी होती है और पेट खराब महसूस होता है।
अफ़्रीका में हाथियों को कुछ ऐसे चॉकलेट का सेवन करते देखा गया है जिसमें बंधक वाले तत्व पाए गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस व्यवहार में केवल अतिविशिष्ट मादा हाथियों की बात देखी गई है, जिसमें संकेत दिया गया है कि वे प्रसव या गर्भपात के लिए प्राकृतिक रूप से स्थिर का उपयोग करते हैं।
दक्षिण अमेरिका के कुछ तोते विभिन्न बीज ढूंढते हैं, लेकिन साथ ही वे एक विशेष प्रकार की मिट्टी भी ढूंढते हैं जो इन नमूनों में मौजूद विभिन्न तत्वों को निष्क्रिय कर देती है। यह मिट्टी उन्हें विषहरक की तरह काम करती है।
भालुओं को भी कभी-कभी औषधीय आयुर्वेदिक रूबलते देखा गया है, खासकर तब जब उन्हें चोट या सूजन होती है। ऐसा अनोखा होता है कि वे दर्द से राहत के लिए इन चूहों का सेवन करते हैं।
इनसे स्पष्ट है कि जानवर केवल भूख या स्वाद के कारण किसी औषधि या पदार्थ का चयन नहीं करते हैं, बल्कि उनका चयन और उद्देश्यपूर्ण होता है - एक ऐसी प्रणाली जिसमें जानवर स्वयं अपने शरीर की जांच और उपचार करते हैं।
4. भारत में जूफार्माकोग्नोसी के संकेत
भारतीय परिवेश में भी ऐसे कई मिलते हैं, ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्र जहाँ समुद्र तट को खुले वातावरण में प्रवेश का अवसर मिलता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में यह आम धारणा है कि गाय या भैंसा यदि बीमार है, तो वह विशेष प्रकार की मिट्टी या मिट्टी के विक्रेताओं की ओर से स्वतः आकृष्ट होता है। कई लोग यह बात जानते हैं कि जब बीस्ट पेट की बीमारी से पीड़ित होता है तो वह कुछ खास बातें तलाशता है।
ऐसा माना जाता है कि बंदर कभी-कभी नीम या बबूल के शिष्यों को चबाते हैं, जिससे उन्हें कुलपतियों से मुक्ति मिल जाती है। कुछ चारवाहों ने यह भी बताया कि गर्भवती बकरी के नवजात शिशुओं की पहली विशेष पत्तियाँ होती हैं, तो वह अंगों को सहज बनाती हैं।
आयुर्वेदिक परंपरा में भी यह उल्लेख किया गया है कि कुछ औषधियों के व्यवहार के निरीक्षण से पहचान की जाती है। उदाहरण के तौर पर जब नेवला सर्प से लड़ाई के बाद किसी विशेष बंगले के रेस्तरां को बंद कर दिया जाता है, तो माना जाता है कि वह उस उपचार से विषहर गुण प्राप्त करता है।
5. वैज्ञानिक एवं औषधीय महत्व
जू फार्माकोग्नोसी का सबसे बड़ा वैज्ञानिक योगदान यह है कि यह हमें बताता है कि प्रकृति स्वयं एक जैव-औषधशाला है, जहां पशु अपने अनुभव या जैविक अंतर्ज्ञान से मौलिक विकल्प विकल्प हैं।
इस क्षेत्र के अध्ययन से कई ऐसे वैज्ञानिकों की पहचान हुई है जिनमें एल्कल ऑक्साइड, टैनिन, फ्लेवोनॉयड्स जैसे तत्व मौजूद हैं, जो मानव चिकित्सा में उपयोगी हैं। यह अध्ययन जैव प्रेरित औषधि अनुसंधान (बायोप्रोस्पेक्टिंग) का नया क्षेत्र खोलता है।
6. रिसर्च की चुनौतियाँ
इस क्षेत्र में अनेक सैद्धांतिक एवं सैद्धान्तिक चुनौतियाँ हैं। एक प्रमुख चुनौती यह है कि हम दिवालियापन के व्यवहार को चिकित्सा के रूप में कितने ज्ञान से समझ सकते हैं। यह भेद करना कठिन होता है कि जानवर ने किसी पदार्थ का सेवन किया, या किसी चिकित्सा उत्पाद का सेवन किया।
इसके अलावा, लंबे समय तक जंगल के व्यवहार का सामना करना कठिन काम है, और जंगल का अनुभव इस प्रकार के व्यवहारकर्ताओं के सामने आने का अवसर भी कम कर रहा है।
7. सम्भावनाएँ और भविष्य की दिशा
भारत में यदि पुरातत्व विशेषज्ञ अनुसंधान, आयुर्वेद विशेषज्ञ और ग्रामीण क्षेत्र के लोकज्ञान को एक साथ लाया जाए, तो जूफार्माकोग्नोसी का क्षेत्र अत्यधिक समृद्ध हो सकता है।
इसके लिए जरूरी है कि आधुनिक तकनीक जैसे एआई वीडियो और विश्लेषण उपकरण का प्रयोग करके जानवरों के व्यवहार का वैज्ञानिक अभिलेख बनाया जाए। इनमें से जो उन वृत्तांतों को समझा जा सकता है, वे अभी तक केवल ग्रामीण अनुभव या पुरावशेषों पर आधारित हैं।
अत:, जूफार्माकोग्नोसी में केवल छोड़े गए औषधि पुनर्जनन की क्षमता का अध्ययन नहीं किया गया है, बल्कि यह एक ऐसा दर्शन है जो हमें याद है कि चिकित्सा केवल निष्कर्ष मानव बुद्धि की मांद नहीं है, बल्कि एक गहन जैविक स्वयं का हिस्सा भी है। सूक्ष्मदर्शी के ये सूक्ष्म चयन और व्यवहार मानव समाज के लिए एक मौन लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण शिक्षण हैं।
प्रकृति में प्रत्येक आकृति अपने आप से चिकित्सा करती है - हमें बस उसका ध्यान अभाव करना सीखना होगा।
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