ऋण और सदी: रिकॉर्ड से लेकर तक का ऐतिहासिक यात्रा-वृत्तांत
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प्राचीन सभ्यताओं से लेकर आधुनिक राष्ट्र-राज्य तक, ऋण और सूद (ब्याज) के प्रति विचारधारा में परिवर्तन आया है। कभी जिसे पाप, शोषण और लालची व्यवहार माना जाता था, वही आज आर्थिक विकास और वित्तीय स्थिरता का स्तंभ माना जाता है। यह परिवर्तन मात्रात्मक आर्थिक नहीं है, यह गहराई से धार्मिक, नैतिक और सैद्धांतिक परिवर्तन की कहानी भी है।
*प्राचीन दृष्टिकोण: कर्ज और सूद से घृणा क्यों मिली?
भारत में:
भारतीय धर्मशास्त्रों और लोक संप्रदाय में ऋण को कर्म-बंधन की श्रेणी में रखा गया है।
मनुस्मृति, नारद स्मृति, याज्ञवल्क्य आदि धर्मशास्त्रों में ब्राह्मणों के लिए वेद लेना शामिल था। 'ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्' जैसी कहावतें इस तनाव को सामाजिक रूप से खत्म कर देती हैं - ऋण लेने का आनंद भी मिलता है, पर लोकनिंदा और आत्मग्लानि का कारण भी होता है।
ग्रीक सभ्यता:
अरस्टू और प्लेटो दोनों ने साडे को 'प्राकृतिक व्यवस्था के विरुद्ध' बताया।
धन का उद्देश्य भौतिक वस्तुओं के इंटरनेट तक सीमित था, न कि धन से धन पैदा होना।
यहूदी परंपरा:
यहूदियों को अपने समुदाय में सूद लेना मनाही था, पर गैर-यहूदियों से सूद आम लेना था।
यूरोप में यहूदी सऊदी खोरी शामिल हो गए, जिससे उनकी प्रतिद्वंद्विता और दमन की राजनीति मजबूत हो गई।
ईसाई दृष्टिकोण:
कैथोलिक चर्च ने साउदखोरी को राक्षस और पापपूर्ण घोषित कर दिया। शेक्सपियर के मर्चेंट ऑफ वेनिस का पात्र 'शाइलॉक' इस सामाजिक घृणा का प्रतीक बन गया है।
इस्लामी शब्दावली:
इस्लाम में रिबा (सूद) को पूर्णतः हराम माना गया है।
कुरान में सूद लेने वाले को "अल्लाह से युद्ध करने वाला" बताया गया है। इस्लाम सऊदी के स्थान पर लाभ-साझेदारी (मुदारबा, मुशरका) पर आधारित आर्थिक ढाँचे को प्राथमिकता देता है।
* धर्म से आरंभ की ओर: परिवर्तन की शुरुआत
प्रोटेस्टेंट पुनर्जागरण:
मैक्स वेबर के अनुसार, प्रोटेस्टेंट एथिक ने धन संचय और निवेश को धार्मिक कर्तव्य के रूप में दिया।
कैल्विनवाद के, ईश्वर के द्वारा चुने गए व्यक्ति सफलता और समृद्धि द्वारा पहचाने जाते हैं - इससे पहले और पूंजीवादी निवेश को नैतिक साहस मिला।
नगरों और व्यावसायिक वर्गों का उदय:
मध्यकालीन यूरोप में नगरों और व्यवसायिक वर्ग (व्यापारी वर्ग) का उदय हुआ, जिसमें निवेश और ऋण की गिरावट थी।
डिजिटल की शुरुआत (इटली में मेडिची परिवार की तरह) ऐसी ही मांग से हुई।
राष्ट्र-राज्यों का निर्माण:
राज्य ने कर, ऋण, और मशीनरी जैसे वित्तीय उपकरणों को सूचीबद्ध किया।
अब कर्ज और निजी दस्तावेज नहीं, सार्वजनिक नीति का विषय बन गया।
* औद्योगिक पूंजीपति और वैज्ञानिक संस्थान
औद्योगिक क्रांति:
अब प्रोडक्शन के लिए बड़ी पूंजी की जरूरत थी, जिसे लोन और लोन से ही फाइनेंस किया जा सकता था।
अब निवेश का प्रतिफल हो गया - जोखिम और समय मूल्य का भुगतान।
आधुनिक माप:
बैंकों ने ऋण और ब्याज को विधिसम्मत, अनुबंधित और क्रिप्टोकरेंसी के रूप में दिया।
अब इंटरेस्ट आर्किटेक्चर नीति का साधन बनी - जो सेंट्रल बैंक (जैसे आरबीआई, फेड) नियंत्रित करते हैं।
व्यक्तिगत ऋण:
आज घर, शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, यहां तक कि त्योहारों पर भी कर्ज लेना पड़ता है।
ईएमआई और क्रेडिट स्कोर जैसे सिद्धांत व्यक्तिगत जीवन में प्रवेश कर गए हैं।
*धार्मिक साकेत का पुनः आरंभपुनर्व्याख्य और परिसंपत्ति
कैथोलिक दृष्टिकोण में उदारता:
वर्तमान में वैटिकन साउद को एक सीमा तक स्वीकार किया जाता है - यदि वह लाभांश शोषण का रूप न हो।
इस्लामिक इस्लामिक का कमाल:
इस्लामिक देशों में शरिया-समर्पित मॉडल मॉडल विकसित किए गए हैं जो बिना साउद, बिजनेसमैन और बिजनेस-मूलक मॉडल पर काम करते हैं।
हालाँकि ग्लोबल असेंबली के दबाव ने इन मॉडलों को लचीले ढंग से बनाया है।
* समसामयिक युग: फ़िल्म से तटस्थता की ओर
पुराना दृष्टिकोण आधुनिक दृष्टिकोण
ऋण = आर्थिक ऋण = वित्तीय उपकरण
शोषण = शोषण = जोखिम और समय का मूल्य
ऋण लेना=अपमानजनक ऋण लेना=चटाई और अवसर
धर्म आधारित निषेध नीति और वाणिज्य आधारित परिवर्तन।
*यह सब अभिलेखों की पुनर्भाषा या विस्मृति?
कर्ज़ और सऊदी का इतिहास केवल आर्थिक साम्य का नहीं है, बल्कि मनुष्य का नैतिक, धार्मिक आस्थाओं और सामाजिक संगठनों की गहराइयों में पैठा हुआ इतिहास है।
प्राचीन काल में ऋण को जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक संकट की तरह देखा गया था, जबकि आज उसे समय प्रबंधन और संसाधन साधन का उपकरण माना जाता है।
क्या यह रूपांतरण केवल शास्त्रीयता की जीत है, या अभिनय की पराजय है?
यह प्रश्न आज भी खुला है - और शायद हर सभ्यता को समय-समय पर उत्तर दिया जाएगा।
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