आजकल सुप्रभातं (Good Morning) अक्सर किसी दूसरे व्यक्ति को सम्मान देने, उससे सामाजिक संपर्क बनाने या बनाये रखने, या केवल औपचारिकता का निर्वाह करने के लिए किया जाता है| यह एक अच्छा व्यवहार है| अक्सर यह अपने लिए नहीं होता | लेक़िन भारतीय संस्कृति में सुप्रभातं सबेरे उठकर पूजनीय व पुण्यश्लोक व्यक्तियों एवं देवताओं का स्मरण कर के दिनचर्या शुरू करने के लिए किया जाता है| यह शय्या पर ही, सोने की समाप्ति पर उठने के बाद, किया जाता है| इसमें पहले करदर्शन, तब धरती से क्षमा याचना, फिर त्रिदेवों व नवनक्षत्रों को नमस्कार, आदिऋषियों का स्मरण, सभी भुवनों, भूलोक, समुद्र, पर्वतों, महानदियों, स्मरणीय पुरों, महादेवियों, स्मरणीय महापुरुषों, आदि का आदर और उनकी अभ्यर्थना की जाती है | इससे हमारी संस्कृति की याददास्त नयी हो जाती है जो दिनभर हमें अच्छे कर्मो में प्रवृत्ति और बुरे कामों से निवृत्ति के लिए प्रोत्साहित करती है|
१. करदर्शन
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तु गौरी च प्रभाते करदर्शनम् ॥ १॥
करमूले तु गौरी च प्रभाते करदर्शनम् ॥ १॥
२. पृथ्वीमाता से क्षमा प्रार्थना
समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥ २॥
नमोऽस्तु प्रियदत्तायै तुभ्यं देवि वसुन्धरे ।
त्वं माता सर्वलोकानां पादन्यासं क्षमस्व मे ॥ ३॥
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥ २॥
नमोऽस्तु प्रियदत्तायै तुभ्यं देवि वसुन्धरे ।
त्वं माता सर्वलोकानां पादन्यासं क्षमस्व मे ॥ ३॥
३. त्रिदेवों और नवग्रहों से अपनी मंगल कामना
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनि-राहु-केतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ ४॥
गुरुश्च शुक्रः शनि-राहु-केतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ ४॥
४. आदिऋषियों और सातों लोकों, पर्वतों, नदियों से अपनी मंगल कामना
सनत्कुमारः सनकः सनन्दनः सनातनो-ऽप्यासुरि-पिङ्गलौ च ।
सप्तस्वराः सप्त रसातलानि कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ ५॥
सप्तार्णवाः सप्त-कुलाचलाश्च सप्तर्षयो द्वीप-वनानि सप्त ।
भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ ६॥
पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथापः स्पर्शी च वायुर्ज्वलनं च तेजः ।
नभः सशब्दं महता सहैव कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ ७॥
महेन्द्रो मलयः सह्यो देवतात्मा हिमालयः ।
ध्येयो रैवतको विन्ध्यो गिरिश्चारावलि-स्तथा ॥ ८॥
गङ्गा सिन्धुश्च कावेरी यमुना च सरस्वती ।
रेवा महानदी गोदा ब्रह्मपुत्रा पुनातु माम् ॥ ९॥
सप्तस्वराः सप्त रसातलानि कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ ५॥
सप्तार्णवाः सप्त-कुलाचलाश्च सप्तर्षयो द्वीप-वनानि सप्त ।
भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ ६॥
पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथापः स्पर्शी च वायुर्ज्वलनं च तेजः ।
नभः सशब्दं महता सहैव कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ ७॥
महेन्द्रो मलयः सह्यो देवतात्मा हिमालयः ।
ध्येयो रैवतको विन्ध्यो गिरिश्चारावलि-स्तथा ॥ ८॥
गङ्गा सिन्धुश्च कावेरी यमुना च सरस्वती ।
रेवा महानदी गोदा ब्रह्मपुत्रा पुनातु माम् ॥ ९॥
५. महानगरों की प्रार्थना
अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका ।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः ॥ १०॥
प्रयागं पाटलीपुत्रं विजयानगरं पुरीम् ।
इन्द्रप्रस्थं गयां चैव प्रत्यूषे प्रत्यहं स्मरेत् ॥ ११॥
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः ॥ १०॥
प्रयागं पाटलीपुत्रं विजयानगरं पुरीम् ।
इन्द्रप्रस्थं गयां चैव प्रत्यूषे प्रत्यहं स्मरेत् ॥ ११॥
६. महादेवियों का स्मरण
अरुन्धत्यनुसूया च सावित्री जानकी सती ।
तेजस्विनी च पाञ्चाली वन्दनीया निरन्तरम् ॥ १२॥
तेजस्विनी च पाञ्चाली वन्दनीया निरन्तरम् ॥ १२॥
७. महान पुरुषोंका स्मरण
वैन्यं पृथुं हैहयमर्जुनं च शाकुन्तलेयं भरतं नलं च ।
रामं च यो वै स्मरति प्रभाते तस्यार्थलभो विजयश्च हस्ते ॥ १३॥
दध्यङ् मनुर्भृगुरसौ हरिपूर्वचन्द्रो भीष्मार्जुन-ध्रुव-वशिष्ट-शुकादयश्च ।
प्रह्लाद-नारद-भगीरथ-विश्वकर्म-वाल्मीकयोत्र चिरचिन्त्यशुभाभिधानाः ॥ १४॥
रामं च यो वै स्मरति प्रभाते तस्यार्थलभो विजयश्च हस्ते ॥ १३॥
दध्यङ् मनुर्भृगुरसौ हरिपूर्वचन्द्रो भीष्मार्जुन-ध्रुव-वशिष्ट-शुकादयश्च ।
प्रह्लाद-नारद-भगीरथ-विश्वकर्म-वाल्मीकयोत्र चिरचिन्त्यशुभाभिधानाः ॥ १४॥
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः ।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ॥ १५॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम् ।
जीवेत् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः ॥ १६॥
पुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको युधिष्ठिरः ।
पुण्यश्लोको विदेहश्च पुण्यश्लोको जनार्दनः ॥ १७॥
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः ॥ १५॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम् ।
जीवेत् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः ॥ १६॥
पुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको युधिष्ठिरः ।
पुण्यश्लोको विदेहश्च पुण्यश्लोको जनार्दनः ॥ १७॥
८. फल वर्णन
इत्थं प्रभाते परमं पवित्रं पठेत् स्मरेद्वा शृणुयाच्च तद्वत् ।
दुःस्वप्ननाशस्त्विह सुप्रभातं भवेच्च नित्यं भगवत्प्रसादात् ॥ १८॥
दुःस्वप्ननाशस्त्विह सुप्रभातं भवेच्च नित्यं भगवत्प्रसादात् ॥ १८॥
प्रतीकों की व्याख्या
करदर्शन में लक्ष्मी भौतिक धन संपत्ति और गात्रसौष्ठव का प्रतीक है, सरस्वती बुद्धि, ज्ञान और विचारसौष्ठव का प्रतीक है तथा गौरी प्राणशक्ति, साहस, बल तथा व्यवस्था का प्रतीक है| हाथ (कर) प्रयास करने एवं कौशल के प्रतीक हैं, कार्यान्वयन के प्रतीक हैं |
करदर्शन में लक्ष्मी भौतिक धन संपत्ति और गात्रसौष्ठव का प्रतीक है, सरस्वती बुद्धि, ज्ञान और विचारसौष्ठव का प्रतीक है तथा गौरी प्राणशक्ति, साहस, बल तथा व्यवस्था का प्रतीक है| हाथ (कर) प्रयास करने एवं कौशल के प्रतीक हैं, कार्यान्वयन के प्रतीक हैं |
पृथिवी विश्वम्भरा है, वसुंधरा है, सर्वंसहा है, माता है| त्रिदेव उत्पत्ति, स्थिति एवं सृजनात्मक विघटन (creative destruction) के प्रतीक हैं और सभी गृह पृथ्वी पर जीवन के नियंता हैं|
सम्पूर्ण प्रकृति को प्रणाम करने के बाद हम वातावरण और मानव पर आते हैं| ऋषियों और सातों लोकों, पर्वतों, नदियों से अपनी मंगल कामना करते हैं| फिर मानव सभ्यता के केंद्र नगरों को प्रणाम करते हैं, महापुरुषों एवं महादेवियों को प्रणाम करते हैं| राजा नल और युधिष्ठिर को याद करते हुए व्यसनों और उनके फल तथा बुरे दिनों को याद करते हैं तथा यह भी सीखते हैं कि विपत्ति में भी साहस और उद्योग को नहीं छोड़ते |
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