शनिवार, 17 अगस्त 2019

हमारे वेद शास्त्र

आज सभी (चारों) वेद लिखित रूप में उपलब्ध हैं और बहुत शास्त्र ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं | लेक़िन एक इशारा भी है - ये पूर्ण नहीं हैं, आधे-अधूरे हैं| उदाहरण के लिए महाभारत ग्रन्थ साठ लाख श्लोकों का बना जिसमें केवल एक लाख श्लोकों की संहिता मानवों के लिए उपलब्ध हुई (देखिये, महाभारत, स्वर्गारोहण पर्व)| मैंने दो सौ से अधिक उपनिषदों के होने की बात पढ़ी है, लेक़िन केवल 108 को देख सका हूँ | विनोबाजी ने (परशुराम के) समुद्रोपनिषद का उल्लेख किया है, पर मुझे अब तक देखने में नहीं आया है|
हम अभी तक इंडस लिपि (हरप्पा और उससे प्राचीन सभ्यता) को डिसायफर नहीं कर पाए हैं|
वेद व शास्त्र अधिकतर श्रुति और स्मृति में आते हैं| तक्षशिला विश्वविद्यालय के अवशेष भर बच रहे हैं, किताबें लुप्त हो गयीं, जला दी गयीं, विद्वान मर-मरा गए| श्रुति-स्मृति नष्ट हो गयी| उपलब्ध शास्त्रों में बहुत सारे ग्रंथों का उल्लेख है, पर वे आज अनुपलब्ध हैं|
देश स्वतंत्र हुआ| किन्तु परतंत्र भारत में संस्कृत पर जितना शोध हुआ था, स्वतंत्र भारत में उतना भी न हो सका | संस्कृत पूजा कराने की भाषा बनकर रह गयी, इसे धर्म के साथ जोड़ दिया गया (वही हालत उर्दू, फ़ारसी की भी हुई)| हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाया गया और सोचा गया कि प्रेमचंद और सुमित्रानंदन पंत के साहित्य के जरिये रोबोटिक्स पढ़ाया जा सकता है अतः अँगरेज़ी को फ़ौरन से पेश्तर हंकाल बाहर करना उत्तम होगा | केवल हिंदी पढ़े हुए व्यक्तियों का समाज अछरकट्टू ही रह सकता है|
वेद निस्सीम है, अपौरुषेय हैं, स्फोट के प्रकाश से प्रकाशित हुए हैं| उन्हें कर्मकांड और धर्म से बांधना आत्मघाती भूल है| आज धरती पर जितने शास्त्र हैं, सब वेद के अंग हैं, आने वाले शास्त्र भी वेद के ही अंग हैं| जहाँ भी स्फोट के प्रकाश से प्रकृति के नियम दिखने लगते हैं, वह वेद का अंग है| भाषा कोई भी हो, लिपि कोई भी हो, ऋषि कोई भी चिंतक हो, वेद को उससे कोई लेना देना नहीं है | उगते सूरज के किरणों की भाषा क्या है? उफनते सागर की भाषा क्या है ? चक्रवात और बिजली कौंधने की भाषा क्या है ?

[अपौरुषेय - विचार और उनकी अभिव्यक्ति पौरुषेय (personal, dependent on the personal constitution, traits, circumstances, idiosyncrasies) हो सकती है और अपौरुषेय (impersonal, independent of the personal constitution, traits, circumstances, idiosyncrasies) हो सकती है| वैज्ञानिकों को जो प्रकृति के नियमों का आभास होता है वह अपौरुषेय होता है | विचारों की दुनियाँ में एक स्फोट होता है और वैज्ञानिक का मन एक विचित्र प्रकाश में नहा जाता है, उसे प्रकृति के किसी नियम का revelation हो जाता है, वह अनजाने में मुस्कुराने लगता है (हृष्यामि च मुहुर्मुहुः in Gita)| यह अनुभव व्यक्तिगत कल्पना नहीं वरन सत्य का आभास है| यह व्यक्तिसापेक्ष नहीं होता, व्यक्तिनिरपेक्ष होता है| यही ज्ञान अपौरुषेय कहलाता है| इस अपौरुषेय ज्ञान की अनुभूति कभी-कभी सुनाई देती सी लगती है (श्रुति); कभी दिखाई देती है (अर्जुन के द्वारा देखा हुआ विराट रूप); कभी स्पर्श की हुई सी लगती है; कभी पहले देखी-सी लगती है (Déjà vu; Clairvoyance)|]

वेदों के चार स्तर: वेदों के चार स्तर (layers) बताये गए हैं (१) संहिता (२) ब्राह्मण (३) आरण्यक, और (४) उपनिषद|
संहिता सिद्धांत पक्ष (Principles) को प्रतिपादित करती है, ब्राह्मण प्रयोगात्मक विधि (प्रैक्टिकल) को, आरण्यक गहन चिंतन (deep meditation) को और उपनिषद अनेकत्व में एकत्व देखने (generalization) को|
दुर्भाग्यवश आरण्यक का अर्थ वन, जंगल, वानप्रस्थ आश्रम से सम्बंधित कर दिया गया है| मेरे विचार में आरण्यक का सम्बन्ध अरण्य (जंगल) से नहीं होकर अरणि से है जिसका संकेत आत्मचिंतन (deep meditation) से है जैसे आत्मानं अरणिं कृत्वा प्रणवश्चोत्तरारणिं| ज्ञान निर्मथनाभ्यसात पाशं दहति पण्डितः (कैवल्योपनिषद -११)| गहन चिंतन अनेकत्व से एकत्व की तरफ़ ले जाता है| यही विज्ञान की प्रकृति है|
देवताओं की स्तुति एवं अभ्यर्थना (संहिता) यज्ञ/पूजन की विधि और मन्त्र (ब्राह्मण), विधियों एवं मन्त्रों पर चिंतन (आरण्यक) तथा अध्यात्मचिंतन (उपनिषद) वेदों का समग्र रूप नहीं है| समग्र वेद जितने ऐहिक (worldly) हैं उतने ही पारलौकिक (other-worldly) भी हैं|
वेदों के स्तरों को आश्रम से तथा वयस (उम्र) से जोड़ना अनावश्यक और भ्रमकारक है (संहिता को ब्रह्मचर्य आश्रम (२५ वर्ष की उम्र तक), ब्राह्मण को गृहस्थाश्रम (२५-५० वर्ष की उम्र), आरण्यक को वानप्रस्थ आश्रम (५०-७५ वर्ष की उम्र) और उपनिषदों को सन्यास आश्रम (७५- उम्र) से जोड़ना) | आदिशंकराचार्य ने इन आश्रमों का पालन कब किया? अतः बात सिद्धांतों के जानने, उनके प्रयोगविधि का अभ्यास करने, गहन चिंतन करने और अनेकत्व में एकत्व देख सकने की है| इनका वर्णाश्रम धर्म या उम्र से कोई सम्बन्ध नहीं है|

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