शनिवार, 17 अगस्त 2019

राखी

'क्या तेरा कोई भाई नहीं है, शीतल? कभी कोई तुमसे राखी बंधवाने नहीं आता'?, पड़ोसन उर्मिला ने शीतल से पूछा| शीतल चुप रह गयी, सूनी-सूनी ख़ुश्क आँखों के साथ|

मन ही मन शीतल कहने लगी - 'हैं क्यों नहीं, तीन-तीन हैं, एक बड़ा भाई और दो छोटे भाई| बड़ा सूरत में रहता है, सुना है बड़ा बिज़नेसमैन है, हवेली जैसा घर है, मोटर है, नौकर हैं - बहुत सम्पत्ति है उसे| भाभी भी सुन्दर मिली है, दो प्यारे-प्यारे बच्चे भी हैं|' उसे छुट्टी ही नहीं मिलती है बिज़नेस से| ससुराल तक साल में एक ही वार जाता है, वो भी जब भाभी बहुत ज़िद करती है|

मँझला भाई विदेश में जाकर बस गया, बहुत बड़ा इंजीनियर है| वह तो माँ-बाप को देखने नहीं लौटा, मेरे पास क्यों आएगा राखी बँधवाने!

छोटा भाई प्रोफ़ेसर है, पढ़ता लिखता रहता है| उसे ककहरा और पहाड़े मैंने ही पढ़ाये थे| आगे पढ़ने में बहुत तेज़ निकला|

अच्छा है, राखी बँधवाने कोई नहीं आता| कोई आएगा तो मेरी ग़रीबी पर उसे तरस आएगा| कहाँ बैठाऊंगी? मेरी खोली में एक ही कमरा है| उसी में हम चार जने रहते हैं, फ़र्श पर बिछावन लगा है| पति लकवा-ग्रसित है| बेटी पड़ोसिनों के बरतन माँज कर कुछ कमा लेती है| मैं दिनभर कपड़े सीती हूँ तो पेट चलता है| मन्नू स्कूल तो जाता है, लेक़िन खिचड़ी खाने| वह पढ़ेगा नहीं| थोड़ा बड़ा होगा तो कोई काम पकड़ लेगा| भगवान ने मुँह दिया है तो आहार भी देगा|

एक राखी पाँच रूपये की आती है| अगर तीनों भाई एक साथ आ जाएँ तो! मानो उनके बच्चे भी बुआ से मिलने आ जाएँ तो?

नहीं, वे नहीं आयेंगे| अच्छा है कि नहीं आयेंगे| मेरी हालत देखकर दुखी ही होंगे| जहाँ हैं, रहें, सुखी रहें|

शीतल दरवाज़े पर खड़ी कुछ देर सोचती रही|

फिर वह झपट कर कमरे के अंदर चली गयी| बोबिन से एक टुकड़ा धागा तोड़ा और उसे कोने में रखे कृष्ण की मूर्ति की कलाई में लपेट दिया|

बोली, कोई नहीं आया, न आये| तू तो है किशन| तुझे तो मुझको बहन कहने में शरम नहीं आएगी?

शीतल की ख़ुश्क आँखे गीली हो गयी थीं|

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