शनिवार, 17 अगस्त 2019

अभिनय, मुखौटा, पाखंड, प्रदर्शन, दम्भ और जीवन

भीष्म से बड़ा ब्रह्मचारी शायद ही पैदा हुआ हो, उनके ब्रह्मचर्य व्रत पर ऋषियों की रूह काँप जाती थी, लेक़िन उन्होंने कभी औरतों का हमबिस्तर होकर अपने ब्रह्मचर्य को जाँचने की आवश्यकता नहीं समझी, न ही इसपर कोई लेक्चर दिया और न क़िताब लिखी| उन्हें अपने ब्रह्मचर्य के प्रदर्शन की ज़रूरत नहीं थी|
चाणक्य से बड़ा राष्ट्रवादी, ज़िद्दी, त्यागी और राजनीति का पंडित नहीं हुआ, पर उन्होंने कभी त्यागी या राष्ट्रवादी होने का दम नहीं भरा| उन्होंने राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ा और इसके लिए हर तरह का ख़तरा मोल लिया, यहाँ तक कि अपने लिए कौटिल्य नाम को स्वीकार किया, बदनामी मोल ली| उन्होंने अपने को संत दिखाने की आवश्यकता नहीं समझी|
दधीचि से बड़ा कोई दानी नहीं हुआ| राजा बलि, हरिश्चंद्र वग़ैरह दधीचि के सामने पानी भरेंगे| देव शिल्पी विश्वकर्मा ने दधीचि की हड्डियों से देवराज इंद्र के लिए वज्र नामक अस्त्र का निर्माण किया जिससे वृत्रासुर का संहार हुआ| दधीचि ने कोई नाटक-नौटंकी नहीं किया|
नारद से बड़ा कोई विद्वान नहीं था, पर उन्होंने (छान्दोग्य उपनिषद में उल्लेख है) कभी ज्ञानी होने का दम्भ नहीं किया| नारद का सम्मान सभी करते थे, राक्षस, दैत्य, देवता, ऋषि, मानव, नाग, किन्नर, सभी| वह अभिमानी नहीं थे|
भगवान बुद्ध से बड़ा शांत, अहिंसाव्रती और करुणापूर्ण कोई मानव नहीं हुआ, पर उन्होंने कोई पाखंड नहीं किया| श्री रामकृष्ण परमहंस से बड़ा सारे धर्मों को समानदृष्टि से देखने वाला कोई नहीं हुआ, पर उन्होंने इसका कोई दिखावा नहीं किया|
अभिनेता (खलनायक) प्राण का अभिनय इतना प्रभावशाली था कि जनमानस में उनके दुष्ट होने की छवि अत्यंत गहरी थी| वास्तविक जीवन में वह निहायत भले आदमी थे|
धारावाहिक (रामानंद सागर) रामायण में राम और सीता के अभिनय करने वाले अरुण गोविल और दीपिका जनमानस में ऐसे वसे कि उनका आगे का अभिनय किसी ने स्वीकार ही नहीं किया| वे राम सीता बन कर मिट गए|
निकोलो मैकियावली जैसा ईमानदार दार्शनिक अपनी ईमानदार और खरी क़िताब द प्रिंस (The Prince) के चलते बदनाम हो गया; गाँधी अपने द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ (The Story of My Experiments with Truth) लिखकर नाम कमा गए| तभी तो मैकियावली ने लिखा था -“Everyone sees what you seem to be, few know what you really are; and those few do not dare take a stand against the general opinion.” और भी “The vulgar crowd always is taken by appearances, and the world consists chiefly of the vulgar.” खद्दर चद्दर सब कोई देखे, मन के तिकड़म जाने कौन | नाटकबाज़ी की दुनियाँ में छलियों को पहचाने कौन||
अभिनय, मुखौटा, पाखंड, प्रदर्शन और दम्भ सत्य नहीं हैं और इनका आचरण सत्य के साथ प्रयोग नहीं, राजनीति में सत्याभासी छल-छद्म का प्रयोग है| इनकी सीमा राजनीतिक रंगमंच तक ही सीमित रखना लाभप्रद और स्वास्थ्यप्रद है| स्टेज के बाहर गोविल को राम मानना, दीपिका को सीता मानना, अरविन्द त्रिवेदी को रावण और मुकेश रावल को विभीषण मानकर उनसे नफ़रत करना, गाँधी को महान चतुर और समर्पित राजनीतिज्ञ के बदले संत महात्मा मानना नासमझी के सिवा और क्या है?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें