सोमवार, 26 मई 2025

गिग इकोनोमी: भारत में एक उभरता यथार्थ और उसकी बहुआयामी प्रभावधारा

गिग इकोनोमी: भारत में एक उभरता यथार्थ और उसकी बहुआयामी प्रभावधारा

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आज के वैश्विक और डिजिटल युग में अर्थव्यवस्था के पारंपरिक स्वरूप में एक बड़ा परिवर्तन आया है। पूर्णकालिक, स्थायी नौकरियों की जगह अस्थायी, स्वतंत्र और लघु अवधि के कार्यों का बोलबाला बढ़ रहा है। इस नवाचारी श्रम-व्यवस्था को "गिग इकोनोमी" कहा जाता है। भारत में यह प्रवृत्ति न केवल तीव्र गति से बढ़ रही है, बल्कि श्रम के स्वरूप, सामाजिक सुरक्षा और दीर्घकालिक आर्थिक विकास पर भी गहरे प्रभाव छोड़ रही है।


* गिग इकोनोमी क्या है? गिग इकोनोमी एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें काम पारंपरिक नौकरी के रूप में न होकर लघुकालिक अनुबंधों, फ्रीलांस असाइनमेंट्स या ऑन-डिमांड कार्यों के रूप में होता है। इसमें कार्यकर्ता (Gig Worker) किसी एक संस्था से बंधे नहीं होते, बल्कि अलग-अलग ग्राहकों या प्लेटफॉर्म्स के लिए काम करते हैं। Zomato, Swiggy, Uber, Ola, Urban Company जैसे प्लेटफॉर्म इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।


* भारत में गिग इकोनोमी के बढ़ने के प्रमुख कारण


डिजिटलीकरण और स्मार्टफोन की पहुँच: भारत में इंटरनेट और स्मार्टफोन की सुलभता ने ऑनलाइन कार्य-प्रणालियों को विस्तार दिया है।


युवा जनसंख्या: भारत की विशाल युवा आबादी और बेरोजगारी की चुनौती ने अस्थायी कार्यों को अपनाने की प्रवृत्ति को बढ़ाया है।


कॉर्पोरेट लचीलापन: कंपनियाँ लागत घटाने के लिए फिक्स्ड जॉब्स की बजाय ऑन-डिमांड लेबर को प्राथमिकता देने लगी हैं।


COVID-19 के बाद की परिस्थितियाँ: महामारी के बाद दूरस्थ कार्य, लचीले समय, और टेक आधारित सेवाओं की मांग बढ़ी, जिससे गिग कार्य बढ़े।


सरकारी प्रोत्साहन और स्टार्टअप संस्कृति: स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं ने प्लेटफॉर्म आधारित कार्य-व्यवस्थाओं को समर्थन दिया।


थोड़ी गहराई में जाकर सोचें तो गिग इकोनोमी के उदय के स्ट्रक्चरल कारण हैं। यह केवल तकनीकी और बाज़ार आधारित कारणों से नहीं हुआ, बल्कि इसके पीछे कुछ गहरे संस्थागत, नीतिगत और सामाजिक कारण भी हैं। आइए इन पहलुओं को क्रमवार समझते हैं:


(क). श्रमिक यूनियनों (Labour Unions) की कमजोरी और विघटन: औद्योगिक क्षेत्रों में ट्रेड यूनियनों का प्रभाव पहले की तुलना में काफी घट गया है। निजीकरण, सेवा क्षेत्र का उदय और अनुबंधित मज़दूरी ने यूनियनों को हाशिए पर डाल दिया। यूनियनों की अप्रभावीता और नये श्रमिक वर्ग (जैसे प्लेटफ़ॉर्म वर्कर) को संगठित न कर पाने की अक्षमता ने गिग वर्क को असंगठित और शोषण-प्रवण बना दिया। इससे गिग इकोनोमी को बिना विरोध के श्रम की आपूर्ति मिली।


(ख). आरक्षण नीति और औपचारिक नौकरियों का संकुचन: आरक्षण-प्राप्त नौकरियाँ संख्या में सीमित हैं और ज्यादातर औपचारिक सरकारी क्षेत्र में केंद्रित हैं। प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण लागू नहीं है, और वहाँ रोजगार की संख्या घट रही है या अस्थायी रूप ले रही है। इससे वंचित वर्गों का एक बड़ा हिस्सा गिग कार्य की ओर प्रवृत्त हुआ है, क्योंकि औपचारिक सेक्टर या तो बंद हो गया या संकुचित।


(ग). सरकारी कल्याणकारी योजनाओं की सीमाएँ और असंगति: सरकार की कल्याण योजनाएँ जैसे MGNREGA, PM-KISAN, या उज्ज्वला योजना अस्थायी राहत देती हैं, दीर्घकालिक सुरक्षा नहीं। बेरोजगारी और असमानता से जूझ रहे लोगों के लिए गिग कार्य त्वरित आय का स्रोत बन गया, भले ही उसमें सुरक्षा न हो। यह भी देखा गया कि कुछ गिग वर्कर सरकारी योजनाओं को पूरक आय के रूप में देखते हैं, जिससे उन्हें गिग में बने रहने की मजबूरी नहीं लगती।


(घ). क्रोनी कैपिटलिज़्म (Crony Capitalism): बड़े कॉर्पोरेट समूहों और सरकारों के बीच साठगांठ से नीतियाँ पूंजी-हितैषी बनीं, श्रमिक-हितैषी नहीं। लेबर कोड में हुए हालिया बदलावों ने रोजगार को अधिक लचीला और श्रमिकों को कम संरक्षित बना दिया, जिससे गिग श्रमिकों के लिए औपचारिक सुरक्षा कमज़ोर हुई। टेक-आधारित कंपनियों (जैसे फूड डिलीवरी, कैब सर्विस) को सरकार ने अनेक प्रोत्साहन दिए, परन्तु उनके श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कठोर नियम नहीं बनाए।


(ङ). खराब शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली: भारतीय शिक्षा प्रणाली में कौशल आधारित प्रशिक्षण की भारी कमी है। न तो स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा है, न कॉलेजों में उद्योग की माँग के अनुसार पाठ्यक्रम। इससे एक बड़ा युवा वर्ग ऐसा तैयार हो रहा है जो औपचारिक, कुशल नौकरी पाने में असमर्थ है, परंतु ऐप आधारित असंगठित कार्य कर सकता है। गिग इकोनोमी ने इस अल्प-कौशल वर्ग को एक वैकल्पिक आय का मार्ग दिया।


* गिग इकोनोमी का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव


(क) अर्थव्यवस्था के संगठन पर प्रभाव: गिग इकोनोमी ने कार्यबल की प्रकृति को बिखरा हुआ और लचीला बना दिया है। इससे औपचारिक क्षेत्र संकुचित और अनौपचारिक क्षेत्र विस्तृत होता गया है। यह पारंपरिक सामाजिक अनुबंधों (जैसे सामाजिक सुरक्षा, स्थायित्व) को तोड़ता है।


(ख) स्थिरता और दीर्घकालीन विकास पर प्रभाव: गिग इकोनोमी तात्कालिक उत्पादकता में वृद्धि तो करती है, किंतु यह अस्थिर होती है। दीर्घकाल में यह आय असमानता, श्रम का शोषण और सामाजिक असंतुलन बढ़ा सकती है। स्थिर, प्रशिक्षित कार्यबल का निर्माण बाधित होता है।


(ग) कौशल विकास पर प्रभाव: गिग वर्कर को सामान्यतः प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। यह कार्य कौशल-आधारित तो होते हैं, परंतु उनमें वृद्धि और विशेषज्ञता की संभावना सीमित होती है। दीर्घकाल में यह उत्पादकता और नवाचार को प्रभावित करता है।


(घ) संसाधनों के आवंटन पर प्रभाव (Allocation of Resources): कंपनियाँ लघुकालिक लाभ हेतु गिग श्रमिकों का उपयोग करती हैं, जिससे मानव संसाधनों का दीर्घकालिक विकास नहीं हो पाता। पूंजी और श्रम के बीच का संतुलन विघटित होता है।


(ङ) कल्याण और सामाजिक न्याय पर प्रभाव: गिग वर्करों को न्यूनतम वेतन, स्वास्थ्य बीमा, पेंशन, मातृत्व लाभ जैसे अधिकार नहीं मिलते। इससे आर्थिक असुरक्षा और सामाजिक विषमता बढ़ती है। श्रम का अधिकार अप्रत्यक्ष रूप से छीना जाता है।


* भारत में नीति की स्थिति और संभावनाएँ भारत सरकार ने 2020 में "Code on Social Security" के माध्यम से गिग वर्करों को सामाजिक सुरक्षा देने की बात कही थी, किंतु उसका कार्यान्वयन सीमित और अस्पष्ट है। कुछ राज्य जैसे राजस्थान ने प्लेटफॉर्म वर्करों के लिए कल्याण बोर्ड बनाए हैं। परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर कोई ठोस और लागू व्यवस्था अब भी प्रतीक्षित है।


* गिग इकोनोमी भारत के लिए अवसर भी है और चुनौती भी। यह युवाओं को अल्पकालिक रोजगार दे सकती है, लेकिन यदि इसे नीति, सुरक्षा और प्रशिक्षण से नहीं जोड़ा गया, तो यह श्रम बाज़ार को अस्थिर, विषम और दीर्घकाल में अलाभकारी बना सकती है। भारत को गिग इकोनोमी को समावेशी, न्यायसंगत और विकासोन्मुख बनाने हेतु ठोस नीति ढांचे, डिजिटल श्रम अधिकारों और सामाजिक सुरक्षा की सुनिश्चितता पर तत्काल कार्य करना होगा।

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उनके लिए जो Gig Economy  पर ज्यादा जानना या रिसर्च करना चाहते हैं:


प्रमुख ग्रंथ और पुस्तकें (Books & Monographs)


1. Guy Standing (2011)

The Precariat: The New Dangerous Class

– Bloomsbury Academic.


2. Juliet B. Schor (2020)

After the Gig: How the Sharing Economy Got Hijacked and How to Win It Back

– University of California Press.


3. Arun Sundararajan (2016)

The Sharing Economy: The End of Employment and the Rise of Crowd-Based Capitalism

– MIT Press.


4. Shoshana Zuboff (2019)

The Age of Surveillance Capitalism: The Fight for a Human Future at the New Frontier of Power

– PublicAffairs.


5. Devaki Jain (2005)

Women, Development, and the UN: A Sixty-Year Quest for Equality and Justice

– Indiana University Press.


6. Jean Tirole (2017)

Economics for the Common Good

– Princeton University Press.


महत्वपूर्ण शोध-पत्र और नीतिगत लेख (Academic Articles & Reports)


1. Martin Kenney & John Zysman (2016)

The Rise of the Platform Economy

– Issues in Science and Technology, Vol. 32, No. 3.


2. International Labour Organization (ILO) (2021)

World Employment and Social Outlook: The role of digital labour platforms in transforming the world of work

– Geneva: ILO.


3. Reetika Khera et al. (2022)

Gig Workers and Social Security in India

– Research paper for Centre for Sustainable Employment, Azim Premji University.


4. NITI Aayog (2022)

India's Booming Gig and Platform Economy: Perspectives and Recommendations on the Future of Work

– Government of India.


5. World Bank (2019)

The Changing Nature of Work – World Development Report

– Washington DC: World Bank.


6. ILO (2018)

Digital Labour Platforms and the Future of Work – Towards Decent Work in the Online World

– Geneva: International Labour Organization.

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