सोमवार, 26 मई 2025

भारत बनाम चीन: सात दशकों की विकास यात्रा का तुलनात्मक विवेचन

भारत बनाम चीन: सात दशकों की विकास यात्रा का तुलनात्मक विवेचन

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हम सभी जानते हैं कि 1947 में स्वतंत्र भारत और 1949 में साम्यवादी चीन — दोनों ने औपनिवेशिक नियंत्रण से मुक्त होकर आधुनिक राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया शुरू की। दोनों देशों के पास विशाल जनसंख्या, ऐतिहासिक गौरव की स्मृति, गहरी गरीबी, और एक नई सामाजिक व्यवस्था की आकांक्षा थी।


सात दशकों के बाद, चीन एक वैश्विक महाशक्ति है, जबकि भारत अब भी "विकासशील" की परिधि में संघर्षरत है। यह लेख उस ऐतिहासिक और नीतिगत अंतर को पहचानने का प्रयास है जिसने इन दोनों राष्ट्रों की नियति को इतना भिन्न बना दिया।


* आदर्शवाद बनाम यथार्थबोध: भारत की मूल चूक


भारत के नेताओं ने आधुनिक राष्ट्र के निर्माण में यथार्थबोध की राजनीति नहीं, बल्कि आदर्श-प्रदर्शन की राजनीति को चुना। यह दिखावे का नैतिकता-बोध था जो:


विश्वमंच पर "धर्मनिरपेक्ष", "जाति-निरपेक्ष", "गांधीवादी" कहे जाने के लिए था


परंतु भूमि सुधार, वैज्ञानिक शिक्षा, या प्रशासनिक पारदर्शिता जैसे बुनियादी मुद्दों को टालता रहा


यह एक प्रकार का “सांस्कृतिक सेंटहुड” था, जो सत्ता और आत्मतुष्टि दोनों को संतुलित करता था, लेकिन जनता को वास्तविक साधनों से वंचित कर देता था।


चीन ने इसके उलट, क्रांतिकारी यथार्थबोध को अपनाया। उसे विश्व मंच पर "अच्छा" दिखना नहीं था — उसे अपने राष्ट्र को मजबूत बनाना था।


* शिक्षा: भारत में प्रमाणपत्र, चीन में निर्माण


भारत में शिक्षा प्रणाली अंग्रेज़ी-आधारित, स्मरण-प्रधान, और औपनिवेशिक प्रशासनिक सेवा की छाया में बनी रही।


यहाँ शिक्षा का लक्ष्य “नौकरी” है, “राष्ट्रीय निर्माण” नहीं


इंजीनियर और वैज्ञानिक बनने का अर्थ है विदेश जाना


R&D और नवाचार विश्वविद्यालयों से अनुपस्थित रहे


चीन में शिक्षा प्रणाली तकनीक, अनुसंधान और राष्ट्र निर्माण का उपकरण बनी। STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) विषयों में प्रभुत्व, स्थानीय भाषा में उच्च शिक्षा, और विश्वविद्यालयों को औद्योगिक नीति से जोड़ना — यह सब चीन ने सशक्त रूप से किया।


* वैज्ञानिक और तकनीकी स्वावलंबन की रणनीति


भारत में संस्थान तो बने — ISRO, DRDO, IITs — परंतु वे:


नौकरशाही, सीमित बजट और नीति में प्राथमिकता की कमी के शिकार रहे


निजी क्षेत्र ने विज्ञान और तकनीक में निवेश नहीं किया


इसके विपरीत, चीन ने:


विदेशी तकनीक को आयात कर तेज़ी से आत्मसात किया


राष्ट्रीय कंपनियों (Huawei, DJI, BYD) को वैश्विक मंच पर उतारा


विज्ञान को “नीति का केंद्र” और “राष्ट्र की आत्मा” बना दिया


भारत अब भी डिजिटल उपकरणों से लेकर फार्मास्युटिकल मशीनों तक आयात पर निर्भर है।


* प्रतिभा का उपयोग: 'Intellectual Exile' बनाम 'National Stewardship'


भारत की प्रतिभा विदेशी संस्थानों की सेवा में चली जाती है — Google, Microsoft, NASA।


चीन ने प्रतिभाशाली नौजवानों को सीखने के लिए विदेश भेजा, परन्तु लौटाकर राष्ट्र निर्माण में लगाया। चीनियों के लिए विदेश ज्ञान का स्रोत है, भारतीयों के लिए मुक्ति का द्वार या विश्वगुरु बनने की आत्मप्रवंचना। "हमारे लोग बाहर बहुत अच्छा कर रहे हैं" कॉम्प्लैक्स।


* नीति और नेतृत्व में गंभीरता


भारत की लोकतांत्रिक राजनीति:


जाति, धर्म, क्षेत्र और भावनात्मक मुद्दों में उलझी रही


विज्ञान, तकनीक, उत्पादन और श्रम जैसे “थकेले” मुद्दे मतदाताओं और नेताओं दोनों की रुचि से बाहर रहे


इसके विपरीत, चीन की पार्टी नेतृत्व प्रणाली भले तानाशाही हो, परंतु दीर्घकालिक योजना और विशेषज्ञता पर आधारित रही — Belt and Road Initiative, Made in China 2025, AI master plan आदि उसके उदाहरण हैं।


* औद्योगीकरण और रोज़गार


भारत की नारे आधारित औद्योगिक योजनाएँ — “मेक इन इंडिया”, “स्टार्टअप इंडिया” — संरचनात्मक सुधारों के बिना चलायी गईं:


भूमि और श्रम सुधार अधूरे


R&D में निवेश न्यूनतम


कौशल विकास नीतियाँ कागज़ी


चीन ने पूरी औद्योगिक पारिस्थितिकी (ecosystem) खड़ी की: श्रमिक प्रशिक्षण, उत्पादन क्लस्टर, निर्यात नीति, टेक्नोलॉजी अपग्रेड।


* पाखंडी आदर्शवाद बनाम राष्ट्र-केंद्रित यथार्थवाद


भारत के नेतृत्व ने धर्मनिरपेक्षता, जातिनिरपेक्षता, शांति और गांधीवाद जैसे आदर्शों को व्यवहार में नहीं, प्रदर्शन में रखा।


जब जाति उन्मूलन की बात होती है, तब आरक्षण को राजनीतिक औजार बना लिया जाता है


जब शांति की बात होती है, तब सैन्य शोध की उपेक्षा कर दी जाती है


जब "धर्मनिरपेक्षता" की बात होती है, तब बहुसंख्यकों को ही धर्मनिरपेक्ष बनने की सलाह दी जाती है


यह आदर्शवाद नीति नहीं बन सका, केवल राजनीतिक "नैतिक मुद्रा" बन गया। इसके विपरीत, चीन ने ऐसा कोई पाखंड नहीं किया — उसने राष्ट्र के हित को एकमात्र उद्देश्य बनाया।


* भारत की चूक और उसकी संभावनाएँ


भारत की सबसे बड़ी चूक नीति में नैतिक आदर्शों का खोखला प्रदर्शन और रचनात्मक यथार्थबोध का अभाव रही है।


यदि भारत:


शिक्षा को उत्पादक, तकनीकी और व्यावसायिक बनाता है


प्रतिभा पलायन को रोकने की कोशिश करता है


नीतिगत नेतृत्व में वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, उद्यमियों को लाता है


और वास्तविक सामाजिक न्याय को पाखंड के बिना अपनाता है,


तो वह चीन को न केवल टक्कर दे सकता है, बल्कि भारतीय परंपरा की मानवीय गहराई और लोकतांत्रिक नैतिकता से उसे पीछे भी छोड़ सकता है।

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