रविवार, 22 जून 2025

Air India और Indian Airlines की कहानी: एक सरकारी कुचक्र और प्राइवेट मैनेजमेंट की कहानी (शुरू से हालिया प्लेन क्रैश तक)

Air India और Indian Airlines की कहानी: एक सरकारी कुचक्र और प्राइवेट मैनेजमेंट की कहानी (शुरू से हालिया प्लेन क्रैश तक)

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Ahmedabad में 12 जून 2025 को  Air India फ्लाइट AI 171  (एक Boeing 787‑8 Dreamliner (VT‑ANB)), London‑Gatwick के लिए टेकऑफ़ के तुरंत बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। पूरा देश शोकाकुल है। 


बहुत लोग बहुत कुछ कहेंगे, लिखेंगे। लेकिन मुझे भी कुछ कहना है। एक कहानी। बस एक कहानी। तो सुनिये।


* प्रारंभिक युग: जब सपना आसमान में था (1932–1953)


1932 में J.R.D. टाटा ने Tata Airlines की स्थापना की थी — एक निजी भारतीय पहल जिसने कराची से मद्रास तक डाक और यात्रियों की सेवा दी। ये भारतीयों द्वारा शुरू की गई पहली एयरलाइन थी।


1946 में Tata Airlines का नाम बदलकर Air India कर दिया गया।


1948 में भारत सरकार और टाटा समूह ने मिलकर Air India International की शुरुआत की, जिसमें सरकार की 49% हिस्सेदारी थी।


J.R.D. टाटा का विजन, उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्धता और सेवा की गुणवत्ता उस युग की पहचान थी। यह एक ऐसा दौर था जब भारत की एयरलाइन दुनिया में प्रतिष्ठित मानी जाती थी।


* राष्ट्रीयकरण का कुचक्र (1953–1990)


1953 में, भारत सरकार ने Nehruvian समाजवाद की नीति के तहत Air India और सभी निजी एयरलाइनों का राष्ट्रीयकरण कर दिया।

इसके दो हिस्से बने:


Air India International: अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए


Indian Airlines Corporation (IAC): घरेलू और क्षेत्रीय उड़ानों के लिए


J.R.D. Tata को चेयरमैन बनाकर दिखावटी निजीपन बनाए रखा गया, परंतु निर्णय सरकार के हाथ में था।


धीरे-धीरे राजनीतिक दखल, नौकरशाही अक्षमता, नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद और सुस्त निर्णय प्रक्रिया ने Air India की विश्वसनीयता को क्षीण कर दिया।


* उदारीकरण के झटके और निजी प्रतियोगिता (1991–2006)


1991 के बाद, जब भारत ने अर्थव्यवस्था खोलनी शुरू की, तब:


निजी कंपनियाँ (Jet Airways, Sahara, आदि) उभरने लगीं


Air India और Indian Airlines की पुरानी कार्यप्रणाली चरमराने लगी; घाटा बढ़ता गया, स्टाफ अनुपात अत्यधिक हो गया। सेवा गुणवत्ता गिरने लगी, टाइम पर उड़ानें कम हुईं, कर्मचारी असंतुष्ट होने लगे, लेकिन सरकार सब्सिडी देती रही।


* विवादास्पद विलय और भारी नुकसान (2007–2017)


2007 में, एक विवादास्पद निर्णय के तहत Air India और Indian Airlines का विलय कर दिया गया।


दो अलग संस्कृति, दो HR संरचनाएँ, दो वित्तीय संकट — और एक राजनीतिक दबाव में लिया गया निर्णय। इसके साथ ही UPA सरकार के समय 111 नए विमान का ऑर्डर दिया गया जिसकी लागत ₹55,000 करोड़ थी — जबकि एयरलाइन पहले से घाटे में थी।


इसके परिणाम विध्वंसक थे। Air India का कर्ज पहाड़ जैसा हो गया। 2007–2017 के बीच एयरलाइन को ₹50,000 करोड़ से अधिक की सरकारी सहायता देनी पड़ी। कर्मचारियों में असंतोष, हड़तालें, टेक्निकल खराबियाँ और विश्वासघात की भावना घर कर गई


* निजीकरण की दिशा में वापसी (2017–2021)


मोदी सरकार ने Air India को बेचने का निर्णय लिया। 2018 में पहली बार बोली खुली, कोई खरीदार नहीं आया। 2020–21 में फिर से प्रक्रिया शुरू हुई, इस बार सरकारी कर्ज को कम करके (₹60,000 करोड़ में से ₹46,000 करोड़ SPV में ट्रांसफर किया गया)


* टाटा की घर वापसी: निजी प्रबंधन की पुनःस्थापना (2022–वर्तमान)


जनवरी 2022 में, Tata Sons ने ₹18,000 करोड़ में Air India का अधिग्रहण किया, जिसमें ₹2700 करोड़ नकद भुगतान, ₹15,300 करोड़ का कर्ज लिया गया, टाटा समूह के अधिग्रहण के बाद CEO Campbell Wilson की नियुक्ति हुई। Vistara, AirAsia India और Air India का एकीकरण शुरू हुआ। नई ब्रांडिंग, विमानों का नवीकरण, डिजिटलीकरण और ग्राहक सेवा सुधार और निजी क्षेत्र की दक्षता, तकनीकी निवेश और वैश्विक मानकों की वापसी की कोशिशें हुईं।


* लेकिन मूल समस्याएँ अभी भी बरकरार हैं। सरकारी कुचक्र बनाम निजी उत्तरदायित्व का द्वन्द्व गलाघोंटू है। निर्णय लेने में देरी, राजनीतिक नियुक्तियाँ, घाटे में चलने पर भी चुनावी कारणों से फैसले, प्रतिस्पर्धा की अक्षमता की अनेक कहानियां हैं।


निजी प्रबंधन दक्षता और गति, बाजार के अनुसार निर्णय, ग्राहक-केंद्रितता, जवाबदेही और दीर्घकालिक दृष्टि से काम करना चाहता है लेकिन इसके लिए political support नहीं है।


Air India अब एक बार फिर निजी हाथों में है — उसी टाटा समूह के पास जिसने इसकी शुरुआत की थी। लेकिन क्या वह नौकरशाही विरासत को पीछे छोड़ पाएगी? क्या टाटा समूह Jet Airways की तरह हतोत्साहित नहीं होगा? क्या भारतीय यात्री अब वाकई विश्वस्तरीय सेवा देख पाएंगे?


तो कल की दुर्घटना मात्र कल की दुर्घटना नहीं है। यह एक इशारा है। यह भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की त्रासदी और निजी प्रबंधन की संभावनाओं का प्रतीक है। यह एक दृष्टिहीन समाजवादी प्रयोग से उभरी एक थकी हुई आत्मा की पुनर्जीवित उड़ान है — जो यह दिखाती है कि भारत में सपना तब तक मरता नहीं जब तक उसे उड़ान भरने की स्वतंत्रता मिले।


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नेहरू काल से ही आर्थिक नीतियों के पीछे कितनी देशहित भावना थी, कितना crony-ism  था, कितना व्यक्तिगत अहंकार था, कितनी शक्तिपूजा थी, कितना प्रतिशोध था,  इसपर मौका मिला तो कभी लिखूंगा। बनेगी तो पूरी किताब। 


"गंदी गलियों से गुजरते आर्थिक विकास की कहानी"।

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